विवेक बघार डाला स्वार्थों के तेल में। आदर्श खा गए! कीचड़ में धंस गए!! अब तक क्या किया, जीवन क्या जिया! बहुत-बहुत ज़्यादा लिया, दिया बहुत-बहुत कम। मर गया देश। अरे, जीवित रह गए तुम!!और भीऔर भी

जिंदगी जिनके लिए सिर्फ जीते चले जाने का नाम है, उनको कहां कभी इससे किसी तरह का गिला-शिकवा होनेवाला है। इसीलिए एकाध अपवादों को छोड़ दें तो जानवर कभी आत्महत्या नहीं करते।और भीऔर भी