फाइनेंस बाज़ार में बुल्स और बियर्स की तरह कई जानवरों के नाम चलते हैं। इनमें से एक है हॉग्स/पिग्स या हिंदी में बोलें तो सुअर। इसका अभिप्राय उन निवेशकों/ट्रेडरों से होता है जो बेहद लालची व अधीर होते हैं, ब्रोकर या वेबसाइट की ‘हॉट’ टिप पर बल्लियों उछलते हैं और रिसर्च करना या जानकारी जुटाना क्लेश समझते हैं। सुअर भले ही मुश्किल से मरे, लेकिन ‘पिग्स’ निवेशक आसानी से कुर्बान हो जाते हैं। अब गुरु की दशा-दिशा…औरऔर भी

हर तरह के व्यापार की कुछ खास जानकारियां होती हैं। व्यापारियों के पास इन्हें पाने के अपने स्रोत, अपने ट्रेड-जर्नल होते हैं, मेटल का अलग, तेल का अलग। शेयर बाज़ार में भी प्रोफेशनल ट्रेडरों व संस्थाओं के पास अपने सॉफ्टवेयर व पेड सब्सक्रिप्शन होते हैं। बिजनेस अखबार या चैनल औरों को दिखाने को होते हैं, जानकारी के स्रोत नहीं। लेकिन हम रिटेल ट्रेडर इन्हीं को पुख्ता स्रोत मानते हैं जो गलत है। अब नए हफ्ते का आगाज़…औरऔर भी

विदेशी संस्थागत निवेशकों का खेल बड़ा व्यवस्थित होता है। कैश सेगमेंट में कोई स्टॉक खरीदा तो डेरिवेटिव सेगमेंट में उसके अनुरूप फ्यूचर्स बेच डाले। दोनों के भाव में 10% सालाना का अंतर हुआ तो वे मजे में आर्बिट्राज करते हैं। उनका लक्ष्य है रुपए डॉलर की विनिमय दर के असर के बाद कम से कम 6-8% कमाकर वापस ले जाना। टैक्स उन्हें देना नहीं होता। जेटली ने कृपा और बढ़ा दी। उनसे सीखते हुए अभ्यास आज का…औरऔर भी

बजट का दिन। आसमान चढ़ी उम्मीदों की परीक्षा का दिन। हो सकता है कि आज बाज़ार 4-5% ऊपर-नीचे हो जाए। अगले दो दिन भी ज्वार-भांटा चल सकता है। लालच खींचता है कि इस उतार-चढ़ाव पर दांव लगाकर डेरिवेटिव्स से एक दिन में 100% तक बनाए जा सकते हैं। लेकिन संभल नहीं पाए तो पूरी पूंजी स्वाहा! ट्रेडिंग का पहला नियम है कि रिस्क को न्यूनतम करो और पूंजी को संभालो। अब करें, अभ्यास बजट के दिन का…औरऔर भी

कुछ दिनों से बाज़ार में गिरावट का जो सिलसिला चला है, उसमें तमाम लोगों के दिमाग में स्वाभाविक-सी शंका उभरी है कि कहीं तेज़ी का मौजूदा दौर निपट तो नहीं गया! अतीत का अनुभव ऐसा नहीं कहता। जनवरी 1991 से नवंबर 2010 के दरमियान तेज़ी के चार दौर तभी टूटे थे, जब सेंसेक्स 24 से ज्यादा पी/ई पर ट्रेड हो रहा था। अभी सेंसेक्स का पी/ई अनुपात 18.44 चल रहा है। घबराहट को समेटकर वार मंगलवार का…औरऔर भी

अल्पकालिक ट्रेडिंग से कमाई और दीर्घकालिक निवेश से दौलत। यही सूत्र लेकर करीब सवा साल पहले हमने यह पेड-सेवा शुरू की थी। दीर्घकालिक निवेश की सेवा, तथास्तु को लेकर हम डंके की चोट पर कह सकते हैं कि हमसे बेहतर कोई नहीं। सूझबूझ की कृपा से इसमें सुझाए कई शेयर साल भर में चार गुना तक बढ़ चुके हैं। ट्रेडिंग में भी हम रिसर्च से आपकी रणनीति विकसित करने में लगे हैं। करें अब शुक्रवार का प्रस्थान…औरऔर भी

जहां खटाखट पाने का लालच जितना बड़ा होता है, वहां उतनी ही तादाद में ठगों का जमावड़ा जुटता है। चाहे वो गया में पिंडदान करानेवाले पंडे हों या बनारस के खानदानी ठग। शेयर व कमोडिटी बाज़ार में लालच जबरदस्त है तो यहा भी ठगों की कमी नहीं। कोई लूटता टिप्स के नाम पर तो कोई सिखाने के नाम पर। बड़ी-बड़ी बातें। एक से एक गुरुघंटाल। आप करें चमत्कार को दूर से नमस्कार। हम देखें गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में आग-सी लगी है। सेंसेक्स और निफ्टी थोड़ा दम मारने के बाद नया ऐतिहासिक शिखर बना डालते हैं। विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) इस साल 1 जनवरी से कल 5 मई तक भारतीय शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट में 35,559 करोड़ रुपए (करीब 590 करोड़ डॉलर) की शुद्ध खरीद कर चुके हैं। ऐसा तब है जब जनवरी से ही अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने बांडों की खरीद घटा दी है। ऐसे में है सावधानी की दरकार…औरऔर भी

दोस्तों! ट्रेडिंग का यह पेड कॉलम शुरू किए हुए आज पूरे एक साल हो गए। आपका पता नहीं, लेकिन मैं इस कॉलम से अभी तक संतुष्ट नहीं हूं। सच है कि भावी अनिश्चितता को मिटाना किसी के लिए भी संभव नहीं। लेकिन ट्रेडिंग की जितनी संभाव्य स्थितियां हो सकती हैं उनमें कम से कम रिस्क में अधिकतम रिटर्न की गिनी-चुनी स्थितियां ही अभी तक हाथ लगी हैं। अभी बहुत कुछ सीखना-सिखाना जरूरी है। अब गुरु की दिशा…औरऔर भी

रिटेल निवेशक और ट्रेडर अगर आज बाज़ार से गायब हो चुके हैं तो इसकी वजह बड़ी साफ है। एक अध्ययन के मुताबिक 2008 से 2013 तक के पांच सालों में गलत प्रबंधन के चलते रिलायंस इडस्ट्रीज़ ने शेयरधारको की दौलत में दो लाख करोड़, एनटीपीसी व एयरटेल ने अलग-अलग 1.2 लाख करोड़, डीएलएफ ने 1.1 लाख करोड़ और आरकॉम ने एक लाख करोड़ रुपए का फटका लगाया है। इस सच के बीच पकड़ते हैं गुरु की चाल…औरऔर भी