सेंसेक्स हो, निफ्टी हो या हो म्यूचुअल फंड, जोखिम से जुड़े हुए इन बाजार आधारित निवेश विकल्पों ने इस साल जून से ही दिल गार्डन-गार्डन कर रखा है। अब आगे बाजार क्या रुख ले रहा है, इसकी खलबली, भविष्यवाणी सब चल रही है एक साथ। अगले कुछ महीनों में बाजार क्या रहेगा? खलबली क्यों है, बाजार आधारित इस जोखिम भरे स्टॉक या शेयर बाज़ार में निवेश के सुखद अवसर बना रहे कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करतेऔरऔर भी

विश्व के जीडीपी में अमेरिका का योगदान 23% और वस्तु व्यापार में 12% ही है। फिर भी दुनिया का 60% उत्पादन और लोग उन देशों में हैं जिनकी मुद्रा की सांसें डॉलर में अटकी हुई हैं। अमेरिका ने दुनिया में अपना आधिपत्य 1920 से 1945 के दौरान ब्रिटेन को पीछे धकेलकर बनाया। लेकिन डॉलर की ताकत बनी रहने के बावजूद इधर अमेरिका की आर्थिक औकात कमजोर हो रही है। अंतरराष्ट्रीय कॉरपोरेट निवेश में अमेरिकी कंपनियों का हिस्साऔरऔर भी

शेयर, कमोडिटी या फॉरेक्स, हर तरह के वित्तीय प्रपत्रों की ट्रेडिंग स्वभाव से ही रिस्की है। बुनियादी नियम यह भी है कि रिस्क और रिटर्न में सीधा रिश्ता है। रिस्क ज्यादा तो रिटर्न ज्यादा और रिस्क कम तो रिटर्न कम। लेकिन इंसान का अंतर्निहित स्वभाव तो रिस्क से बचना है। ऐसे में न्यूनतम रिस्क में अधिकतम रिटर्न ही सबसे तर्कसंगत तरीका हो सकता है। यही हम सीखने और सिखाने में लगे हैं। परखें अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी

ज़रा हिसाब लगाकर देखिए। सौदे आपने वही चुने जिनमें रिस्क-रिवॉर्ड अनुपात एक पर तीन या इससे ज्यादा का है। महीने के 20 सौदे में से 12 गलत निकले तो 2% स्टॉप लॉस से कुल घाटा लगा 24% का, जबकि बाकी आठ सही निकले तो 6% की दर से फायदा हुआ 48% का। इस तरह महीने में कुल मिलाकर 24% का फायदा। यही है ट्रेडिंग में मोटामोटा नफा-नुकसान का आकलन व अनुशासन। अब परखते हैं बुधवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

खास खबर का दिन। रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की दो-दो महीने पर होनेवाली पांचवीं समीक्षा पेश करेगा। सरकार व उद्योग जगत से गवर्नर रघुराम राजन पर दवाब है कि ब्याज दर कम से कम 0.25% घटा दें क्योंकि रिटेल मुद्रास्फीति घट चुकी है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल सस्ता होता जा रहा है। अब आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए ब्याज घटाना ज़रूरी है। लेकिन राजन शायद ही ऐसा कुछ करें। ऐसे में क्या हो ट्रेडिंग रणनीति…औरऔर भी

ब्याज दर जस-की-तस तो बाज़ार बढ़ा सहज गति से। छोटी अवधि में शेयरों के भाव जिस दूसरी बात से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं वो है निवेशकों की रिस्क उठाने की मानसिकता। अगर वे रिस्क लेने से डरते हैं तो भाव गिरते हैं और बगैर खास परवाह किए रिस्क उठाते हैं तो भाव चढ़ते हैं। ट्रेडिंग में अक्सर कंपनी के फंडामेंटल्स नहीं, दांव लगाने की मानसिकता का वास्ता होता है शेयरों के बढ़ने से। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

सब कुछ नया-नया। वित्त वर्ष 2014-15 का आगाज़। अभी तक रिजर्व बैंक साल के शुरू में सालाना मौद्रिक नीति पेश किया करता था। फिर उसी के फ्रेम में तिमाही और बीच में मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा पेश करता था। लेकिन समय की गति इतनी बढ़ गई कि रिजर्व बैंक अब हर दो महीने पर मौद्रिक नीति लाना शुरू कर रहा है। आज वित्त वर्ष के पहले दो महीनों की नीति आएगी। अब आज का स्वागतम ट्रेड…औरऔर भी

इस समय दुनिया भर में हाई फ्रीक्वेंसी और अल्गोरिदम ट्रेडिंग पर बहस छिड़ी हुई है। इस हफ्ते सोमवार और मंगलवार को हमारी पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने भी इस पर दो दिन का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन किया। इससे एक खास बात यह सामने आई कि सेकंड के हज़ारवें हिस्से में ट्रेड करनेवाले ऐसे महारथी भी पहले छोटे सौदों से बाज़ार का मूड भांपते हैं और पक्का हो जाने पर बड़े सौदे करते हैं। अब वार बुधवार का…औरऔर भी

हमने कल बाज़ार खुलने से करीब 45 मिनट पहले ही लिख दिया था कि आज भारी गिरावट का अंदेशा है। इसलिए ज़रा संभलकर। पर निफ्टी 2.09% गिरकर 6135.85 पर पहुंच जाएगा, इतनी उम्मीद नहीं थी। असल में यह बाहरी हवाओं का कोप है। पिछले हफ्ते मात्र दो दिनों में डाउ जोन्स करीब 500 अंक गिरा है। कोई इसका दोष चीन को दे रहा है तो कोई अमेरिका में बांड-खरीद घटाने को। सो, सावधानी से बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

शेयर/कमोडिटी बाज़ार में जो भी ट्रेडिंग से कमाना चाहते हैं, उन्हें यह सच अपने जेहन में बैठा लेना चाहिए कि यहां भावी अनिश्चितता को मिटाना कतई संभव नहीं। यहां सांख्यिकी या गणित की भाषा में प्रायिकता और आम बोलचाल की भाषा में संभावना या गुंजाइश चलती है। जो भी यहां भाव के पक्का बढ़ने/घटने की बात करता है वह या तो अहंकारी मूर्ख है या तगड़ा धंधेबाज़। इस सच को समझते हुए करते हैं हफ्ते का आगाज़…औरऔर भी