शेयरों की चाल को पकड़ने का अचूक उपाय है कि उनके भाव को प्रभावित करनेवाली खबरें आपको सबसे पहले पता चल जाएं। लेकिन ऐसा होने लगे तो बाज़ार का वजूद ही मिट जाएगा। बाज़ार की मूल शर्त है कि यहां मूल्य-संवेदी खबरें हर किसी को समान अवसर और प्लेटफॉर्म पर मिलनी चाहिए। इसकी गारंटी करने के लिए दुनिया भर में इनसाइडर ट्रेडिंग को अपराध माना गया है। ऐसे में चार्ट ही सहारा हैं। अब गुरु की दशा-दिशा…औरऔर भी

आठ मई से नौ जून तक एक महीने के भीतर भेल, बेल, सेल व गेल जैसी तमाम सरकारी कंपनियों के शेयर 20% से लेकर 70% तक बढ़ चुके हैं। स्वाभाविक है कि जिन्होंने इन्हें फूंक मारकर फुलाया, वे मुनाफावसूली तो इनमें करेंगे ही। आम निवेशकों को भी इन्हें बेचकर निकल लेना चाहिए। साथ ही ट्रेडरों को इनमें लॉन्ग नहीं, शॉर्ट करने के मौके ढूंढने चाहिए। गुबार पूरा उतर जाएगा तो मजबूत कंपनियां खिलेंगी। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

हल्ला है कि मोदी के राज में सरकारी कंपनियां बेहतर काम करेंगी। यही वजह है कि पिछले तीन महीनों में बीएसई सेंसेक्स जहां 12.7% बढ़ा है, वहीं बीएसई पीएसयू सूचकांक 39.7% बढ़ गया। पर क्या सरकारी दखल के हट जाने में वाकई वो चमत्कार है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां चमकने लगेंगी? सोचिए, क्या सरकारी बैंकों के गले में फंसे 1.64 लाख करोड़ रुपए के डूबत ऋण की समस्या यूं ही सुलझ जाएगी? अब वार मंगल का…औरऔर भी

यूं तो शेयर बाज़ार हमेशा ही बड़ी पूंजी के इशारों पर नाचता है। लेकिन इधर उसके खेल ज्यादा ही निराले हो गए हैं। वे एमएफसीजी या फार्मा जैसे सदाबहार स्टॉक्स को दबाकर औने-पौने शेयरों को उछाल रहे हैं। मजबूत शेयर गिर रहे हैं, कमज़ोर शेयर कुलांचे मार रहे हैं। मिडकैप व स्मॉलकैप सूचकांक मुख्य सूचकाकों से दोगुना बढ़ रहे हैं। उस्ताद लोग बाद में कमज़ोर शेयरों को बेचकर फिर से खरीदेंगे मजबूत स्टॉक। अब हफ्ते का आगाज़…औरऔर भी

ट्रेडिंग का वास्ता कंपनी के फंडामेंटल्स या बैलेंसशीट से ज्यादा लोगों की भावनाओं को पढ़ने से हैं। वर्तमान नहीं, भविष्य पर, यथार्थ नहीं, उम्मीद पर चलते हैं भाव। तभी तो घाटे में चल रही कंपनियों के भाव भी चढ़े रहते हैं और अच्छे नतीजों के बावजूद शेयर गिर जाते हैं। लोगों की भावना की ताकत बताती है टेक्निकल एनालिसिस। लेकिन पारंपरिक पद्धति की खामी यह है कि वह देर से देती है सिग्नल। हम चलें उससे आगे…औरऔर भी

जहां खटाखट पाने का लालच जितना बड़ा होता है, वहां उतनी ही तादाद में ठगों का जमावड़ा जुटता है। चाहे वो गया में पिंडदान करानेवाले पंडे हों या बनारस के खानदानी ठग। शेयर व कमोडिटी बाज़ार में लालच जबरदस्त है तो यहा भी ठगों की कमी नहीं। कोई लूटता टिप्स के नाम पर तो कोई सिखाने के नाम पर। बड़ी-बड़ी बातें। एक से एक गुरुघंटाल। आप करें चमत्कार को दूर से नमस्कार। हम देखें गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

बस चंद दिन और। फिर विदेशी संस्थागत निवेशकों को विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) कहा जाने लगेगा क्योंकि अभी तक देश में इन पर टैक्स लगाने को लेकर जो भी उलझनें थीं, वे अब दूर हो गई है। पूंजी नियामक संस्था, सेबी ने घोषित किया है कि अब देश में सभी तरह के विदेशी निवेशकों पर एक जैसा टैक्स लगाया जाएगा। कंपनी की इक्विटी में 10% तक विदेशी निवेश एफपीआई माना जाता है। करें अब ट्रेडिंग आज की…औरऔर भी

ट्रेडिंग में कामयाबी के लिए हमें निवेशकों का मनोविज्ञान समझना होगा। इससे एक तो हम खुद गलतियों से बच सकते हैं। गलतियां फिर भी होंगी क्योंकि यह जीने और सीखने का हिस्सा है। दूसरे, इससे हमें पता रहेगा कि खास परिस्थिति में लोगबाग कैसा सोचते हैं। इससे हम ट्रेडिंग के अच्छे मौके पकड़ सकते हैं, दूसरों की गलतियों से कमा सकते हैं क्योंकि यहां एक का नुकसान बनता है दूसरे का फायदा। देखें अब बुध की बुद्धि…औरऔर भी