प्रकृति है। उसके नियम हैं। समाज है। उसके भी नियम हैं। समाज के अलग-अलग घटकों के भी नियम हैं। जो प्रकृति और समाज के नियमों को समझते हैं, वे ही नया कुछ रचते हैं। बाकी या तो बहती गंगा में हाथ धोते हैं या औरों के हाथों ठगे जाते हैं।और भीऔर भी

जब भी हम नया कुछ रचते हैं, रुके हुए सोते बहने लगते हैं, अंदर से ऐसी शक्तियां निकल आती हैं जिनका हमें आभास तक नहीं होता। इसलिए काम शुरू कर देना चाहिए, काबिलियत अपने-आप आ जाएगी।और भीऔर भी