यहां हर चीज का अपना स्वतंत्र चक्र है। तन का भी और उससे जुड़े मन का भी। खुद को दूसरे के हवाले करते ही चक्र उसकी शर्तों पर ढल जाता है। पर मुक्ति अपने चक्र के अपनी शर्तों पर चलने से मिलती है।और भीऔर भी

कुर्सी पकड़ते ही कुर्सी आपको जकड़ लेती है। उससे निकली लौह-लताएं आपको लपेट लेती हैं। आप इंसान से सत्ता के पुर्जे बन जाते हो और आपकी चमडी सीमेंट जैसी सख्त व संवेदनहीन हो जाती है।और भीऔर भी