कल बाज़ार बंद होने के बाद खबर आई कि औद्योगिक उत्पादन जून में घट गया, रिटेल मुद्रास्फीति जुलाई में बढ़ गई। शेयरों के भाव ऐसी खबरों से कहीं ज्यादा अंतरराष्ट्रीय जगत और कंपनियों की हलचलों से प्रभावित होते हैं। लालच होता है कि हम भी खबरों पर ट्रेडिंग करें तो जमकर कमा लें। लेकिन यह मृग-मरीचिका है। खबरें पहुंचती हैं हमसे कहीं पहले, ऑपरेटरों तक। हमारे लिए तो चार्ट ही सहारा हैं। अब चलाएं बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

ट्रेंड के साथ चलो। बाज़ार बढ़ रहा है तो खरीदो, गिर रहा है तो शॉर्ट करो। ऐसे घनेरों सूत्र और आइडिया हैं ट्रेडिंग के। लेकिन कामयाबी का सूत्र छिपा है उनके अमल में। मसलन, ट्रेंड के सूत्र की सबसे शुरुआती बात है कि आप उसे नापेंगे कैसे? कौन-सा मूविंग औसत निकालेंगे, सिम्पल या एक्पोनेंशियल और उनका टाइमफ्रेम क्या होगा? फिर जहां से बाज़ार मुड़नेवाला है, उसे कैसे पकड़ेगे? कुछ ऐसे ही हालात में आगाज़ नए हफ्ते का…औरऔर भी

किसी समय रिलायंस इंडस्ट्रीज़ को शेयर बाज़ार का किंग कहा जाता था। इसके मुखिया धीरूभाई अंबानी के बारे में माना जाता था कि बाज़ार उनके इशारों पर नाचता है। जुलाई 2002 में उनके देहांत के बाद भी माना गया कि बाज़ार में अंबानी भाइयों की तूती बोलती है। लेकिन 2005 से यह स्थिति बदलने लगी। अब बाज़ार में एफआईआई समेत ऐसे खिलाड़ी आ गए हैं जो बाज़ार की दिशा तय करते हैं। इसके मद्देनजर बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

कंपनियां भी इंसान ही चलाते हैं, कोई भगवान नहीं। हर कंपनी के पीछे प्रवर्तक और उनका बनाया प्रबंधन होता है। हमें उसी कंपनी में पूंजी लगानी चाहिए जिसका कामकाज पारदर्शी हो, प्रबंधन ईमानदार हो और उसे पूंजी का सही नियोजन आता हो। जिस कंपनी के प्रवर्तकों ने अपने शेयरों का कुछ हिस्सा गिरवी रख रखा हो, उससे दूर रहना चाहिए क्योंकि गिरते बाज़ार की भंवर इन्हें डुबा देती है। इस हफ्ते बायोफार्मा सेगमेंट की सबसे दबंग कंपनी…औरऔर भी