हमारे अंदर-बाहर हर वक्त जड़ता व गतिशीलता के बीच संघर्ष चलता रहता है। लड़कर खड़े नहीं हुए तो जड़ता खींचकर बैठा देती है। भ्रम और पूर्वाग्रह जड़ता के सहचर हैं, जबकि ज्ञान-विज्ञान गतिशीलता के।और भीऔर भी

चीजें वही, लोग भी वही रहते हैं। लेकिन जान-पहचान होते ही उनका पूरा स्वरूप बदल जाता है। पूर्वाग्रह छंट जाते हैं। असली छवि सामने आ जाती है। इसलिए दूर के नहीं, पास के रिश्ते बनाने जरूरी हैं।और भीऔर भी

जब चील गुरुत्वाकर्षण को तोड़ दूर गगन से धरती का निरीक्षण कर सकती है, इंसान जब हज़ारों मील ऊपर जहाज उड़ा सकता है, तब हम अपने अहम व पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर सच को क्यों नहीं देख सकते।और भीऔर भी

हर शब्द के साथ कोई न कोई छवि या  पूर्वाग्रह जुड़ा है। शब्दों के परे वह अवस्था है जब हम शुद्ध क्रिस्टल की तरह निर्मल व पारदर्शी बन जाते है। पर वहां शब्दों से भागकर नहीं, मथकर ही पहुंचा जा सकता है।और भीऔर भी