जितना हम जानते जाते हैं, सुख का स्तर उतना ही उन्नत होता जाता है और दुख का दायरा उतना ही बढ़ता जाता है। उलझाव बढ़ने से दुख बढ़ता है और उन्हें सुलझाते जाओ तो सुख बढ़ता चला जाता है।और भीऔर भी