इधर डॉलर-रुपए की विनिमय दर में तेजी से आ रहे बदलाव के कारण निवेशकों की दिलचस्पी निफ्टी फ्यूचर्स से ज्यादा डॉलर-रुपए के फ्यूचर सौदों में हो गई है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के आंकड़ों के मुताबिक बुधवार, 2 जून को जहां निफ्टी फ्यूचर्स के 21,20,279 कांट्रैक्ट हुए हैं, वहीं डॉलर-रुपए के फ्यूचर्स में हुए कांट्रैक्ट की संख्या 32,83,341 है। इस तरह बुधवार को निफ्टी फ्यूचर्स की बनिस्बत करीब डेढ़ गुना सौदे विदेशी मुद्रा बाजार में एक्सचेंज परऔरऔर भी

विदेशी मुद्रा के असली सौदागर हैं हमारे बैंक और इनके प्रमुख ग्राहक हैं हमारे आयातक-निर्यातक। आयातकों व निर्यातकों को चिंता रहती है कि उनका विदेशी मुद्रा खर्च या आमदनी कहीं विनिमय दरों के उतार-चढ़ाव के चलते भारतीय मुद्रा में घट-बढ़ न जाए। इसलिए वे बैंकों के पास ऐसे डेरिवेटिव सौदों के लिए जाते हैं ताकि इससे बचा जा सके। ऐसे ज्यादातर सौदे ओटीसी (ओवर द काउंटर) बाजार यानी दो पार्टियों ग्राहक व विक्रेता के बीच आपस मेंऔरऔर भी

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के एक नए सर्कुलर ने ऐसी तमाम कंपनियों को सकते में डाल दिया है जो करेंसी फ्यूचर्स सौदों में हुए मार्क टू मार्क नुकसान के दम पर कर में छूट हासिल करती रही है। सीबीडीटी ने स्पष्ट किया है कि जब तक विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव या करेंसी फ्यूचर्स सौदे असल में पूरे नहीं हो जाते, तब उन पर होनेवाले सांकेतिक नुकसान का फायदा कर रियायत के लिए नहीं मिल सकता। असल मेंऔरऔर भी