behaviour

इंसान और उसके रिश्तों को चलानेवाली मूल वृत्तियां हैं – काम, क्रोध, मद, लोभ, भय। समाज को सही करना है तो इन्हीं वृत्तियों को काम में लगाना होगा। सामाजिक विविधता के तंत्र में ये सभी नकारात्मक वृत्तियां एक-दूसरे को काट देंगी। जहर दवा बन जाएगा।          और भीऔर भी

छोटी-छेटी प्रतिक्रियाओं में हम अक्सर बड़े फैसले कर बैठते हैं। राजनीति और ज़िंदगी दोनों में। भूल जाते हैं कि हमारे इन फैसलों से रिश्ते सन्न रह जाते हैं, भावनाएं तड़क जाती हैं। प्रतिक्रिया से हमें सब मिल जाता है, पर उनकी तो ज़िदगी ही उजड़ जाती है।और भीऔर भी

वही लोग, वही रिश्ते, वही राहें, वही मुश्किलें। ये सब भयावह हैं या सहयोगी, यह हमारे नजरिये पर निर्भर है। ऐसे देखो तो हिम्मत तोड़कर वे हमें अवसाद का शिकार बना सकती हैं। वैसे देखो तो वे ललकार कर हमारे सोये बल को जगा सकती हैं।और भीऔर भी

अपने तक सीमित। खूंटे से बंधी ज़िंदगी। परोक्ष रूप से तंतुओं के तंतु भले ही ग्लोबल हो गए हों, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से रिश्ते बहुत सिकुड़ गए हैं। ऐसे में हांकनेवालों की मौज है क्योंकि किसी को सिर उठाकर उनकी तरफ झांकने की फुरसत ही नहीं है।और भीऔर भी

होलिका व प्रह्लाद तो बहाना हैं। मकसद है हर साल नियम से तन, मन, रिश्तों व धरती में जमा कंकास को जलाकर खाक करना, उल्लास मनाना। अभी तो कंकास इतना है कि हर तिमाही होली की जरूरत है।और भीऔर भी