जहां भी देखो, हर तरफ, हर कोई नोट बनाने में लगा है। इसलिए कि धन है तो सब कुछ है। पद, प्रतिष्ठा, शानोशौकत। सुरक्षा, मन की शांति। जो चाहो, कर सकते हो। छुट्टियां मनाने कभी केरल पहुंच गए तो कभी स्विटजरलैंड। बच्चों को मन चाहा तो ऑक्सफोर्ड से पढ़ाया, नहीं तो हार्वर्ड से। धन की महिमा आज से नहीं, सदियों से है। करीब 2070 साल पहले 57-58 ईसा-पूर्व में हमारे भर्तहरि नीतिशतक तक में कहा गया था,औरऔर भी

जापान में परमाणु बिजली संयंत्रों में धमाकों के बाद हो रहे रेडियोएक्टिव विकिरण से वहां के जन-जीवन पर खतरा बढ़ता जाएगा। इससे पूरे पूर्वी एशिया की जलवायु तक बिगड़ सकती है। फिर भी यह कारण नहीं बन सकता. बाजार को छोड़कर भाग जाने का। हमेशा देखा गया है कि जब भी कोई संकट आता है कि विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) बाजार से बेचकर निकल लेते हैं। अगर मान लें कि वे जापान से बड़े पैमाने पर निवेशऔरऔर भी

कोई कहता है पैसा तो हाथ की मैल है। दूसरा कहता है यह सब हमारे बड़े बुजुर्गों का ढकोसला था और सभी पैसे के पीछे भागते रहे हैं। कुबेर का खजाना, कारूं का खजाना, गड़ा हुआ धन, पैसे का पेड़। न जाने कैसी-कैसी मान्यताएं रहीं हैं अपने यहां। सब समय-समय की बात है। समय बदल चुका है, पैसे की हकीकत भी बदल चुकी है। खुदाई में मिले धन की खबर पुलिस को नहीं दी तो जेल जानाऔरऔर भी