संस्कार बनाम शिक्षा
मान्यता, संस्कार या परंपरा – ये सब जड़त्व व यथास्थिति के पोषक हैं, जबकि शिक्षा से निकली वैज्ञानिक सोच गति का ईंधन है। जड़त्व और गति की तरह शिक्षा और संस्कार में भी निरंतर संघर्ष चलता रहता है जिसमें अंततः गति का जीतना ही जीवन है।और भीऔर भी
जिरहबख़्तर
न जाने कितने जिरहबख्तर बांधे फिरते हैं हम। कभी भगवान, कभी परिवार, कभी परंपरा तो कभी नौकरी का कवच कुंडल हमारी हिफाजत करता रहता है। बहादुर वो है जो इस सारी सुरक्षा को तोड़कर सीधे सच का सामना करता है।और भीऔर भी
निर्भय निर्गुण
भय व भ्रमों के चलते हम चीजों को आधा-अधूरा या आड़ा-तिरछा देखते हैं। सच देखने के लिए हमें निर्भय होना पड़ेगा और इसके लिए समाज व परंपरा से मिली सुरक्षा को तोड़कर असुरक्षित हो जाना जरूरी है।और भीऔर भी
छठां भाग सरकार का
इस समय देश भर में जीएसटी (माल व सेवा कर) लागू करने की तैयारियां चल रही हैं। अगले साल 1 अप्रैल 2011 से इसे अपनाने की घोषणा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी इस साल के आम बजट में कर चुके हैं। कर की समान दरों के बारे में तरह-तरह के प्रस्ताव आ रहे हैं। कोई कहता है कि इसे 12 फीसदी होना चाहिए। ऐसे में हमें एक बार अपने भारतीय मनीषी कौटिल्य की तरफ भी देख लेने कीऔरऔर भी