दया, ममता व करुणा किसी और के कल्याण से ज्यादा अपनी संतुष्टि के भाव हैं। इसलिए दीन-हीन और कमजोर बनकर दुनिया नहीं जीती जा सकती। अपनी दुनिया औरों के भरोसे नहीं चल सकती।और भीऔर भी

निराशावादी चिंतन का कोई अंत नहीं है। निवेश फंडों या ब्रोकरेज हाउसों के सरगना अपने निहित स्वार्थों के चलते बाजार को लेकर जैसी निराशा फैला रहे हैं, उसका भी कोई अंत नहीं है। लेकिन मैं इनकी रत्ती भर भी परवाह नहीं करता क्योंकि मैं कोई ब्रोकिंग के धंधे में तो हूं नहीं। फंड अपने फैसलों को जायज ठहराने की कोशिश करते हैं। कहते हैं कि वे जन-धन का प्रबंधन कर रहे हैं। सच यह है कि फंडऔरऔर भी