गुरु की जरूरत पहले भी थी, अब भी है, कल भी रहेगी। सच्चा गुरु उस पारसमणि की तरह है जिसका हाथ लगते ही पत्थर भी सोना बन जाता है। लेकिन आज तो गुरु कम, गुरुघंटाल ही ज्यादा मिलते हैं।और भीऔर भी

ज़िंदगी की तीखी चढ़ाई में हमेशा आस्था की जरूरत पड़ती है जिसके सहारे आप अंदर-बाहर की हर प्रतिकूलता से निपटते हैं। इस आस्था का प्रतीक गुरु, मित्र, देव, पेड़ या आपका कोई प्रिय भी हो सकता है।और भीऔर भी

गुरु, किताब या ज्ञान के अन्य स्रोतों की भूमिका इतनी भर है कि वे हमारे मन-मस्तिष्क पर पड़े माया के परदे को हटा देते हैं। इसके बाद वास्तविक सच तक पहुंचने का संघर्ष हमें अकेले अपने दम पर करना पड़ता है।और भीऔर भी

हुनर की हर सीढ़ी को पार करने के लिए अंदर से दम भरने की, अंतःप्रेरणा की जरूरत होती है। इसका स्रोत है तो अंदर, लेकिन बाहर का बहाना चाहिए। यह बहाना कोई भगवान, गुरु या पेड़ तक कुछ भी हो सकता है।और भीऔर भी

असंख्य गुरु हमारे अंदर बैठे हैं और हम उन्हें बाहर तलाशते रहते हैं। कभी रहे होंगे पहुंचे हुए संत और फकीर। अभी तो सब छलिया हैं, धंधेबाज हैं। वैसे भी प्रतिभा को द्रोणाचार्य से ज्यादा उनकी प्रतिमा निखारती है।और भीऔर भी