जब मूल वस्तु ही स्थिर नहीं तो उसकी छाया कैसे स्थिर हो सकती है? दुनिया में सब कुछ हर पल बदल रहा है तो हमारे विचार कैसे स्थिर रह सकते हैं? पीछे छूट गए बच्चे की तरह उन्हें साथ ले आना जरूरी है।और भीऔर भी

जो स्थिर है, बैठा है, चलता नहीं, वह गलता है। जो गतिशील है, चलता है, वही दोषों से मुक्ति पाकर शुद्ध व समर्थ बनता है। उपनिषद तक यही कहते हैं। इसलिए ठहरने का बहाना नहीं, चलने की राह खोजनी चाहिए।और भीऔर भी

कबीर की उलटबांसियों पहले आध्यात्म्य की अबूझ पहेलियां लगती थीं। अब दुनिया का असली सच लगती हैं। जैसे, गतिशीलता ही स्थाई है और जिसे हम स्थाई समझते हैं वो तो बराबर गतिशील है।और भीऔर भी