हम अक्सर अतीत के प्रति मोह, वर्तमान के प्रति खीझ और भविष्य के प्रति डर से भरे रहते हैं। कल, आज और कल को साधना जरूरी है। लेकिन उसके लिए हमें निर्मोही, निरपेक्ष और निडर बनना होगा।और भीऔर भी

सोचिए, कभी ऐसा हो जाए कि आपके घर में और आसपास जो भी अच्छी चीजें हैं, जिनसे आपका रोज-ब-रोज का वास्ता पड़ता है, जिनकी गुणवत्ता से आप भलीभांति वाकिफ हैं, उन्हें बनानी वाली कंपनियों में आप शेयरधारक होते तो कैसा महूसस करते? कंपनी के बढ़ने का मतलब उसके धंधे व मुनाफे का बढ़ना होता है और मुनाफा तभी बढ़ता है जब ग्राहक या उपभोक्ता उसके उत्पाद व सेवाओं को पसंद करते हैं, उनका उपभोग करते हैं। आपकीऔरऔर भी

कल किसने देखा है? लेकिन अगर हम अतीत को जान लें। वहां से वर्तमान तक के सफर का ग्राफ समझ लें तो कल का खाका बनने लगता हैं। भविष्य की अनिश्चितता का जोखिम पकड़ में आने लगता है।और भीऔर भी

जो धारा की सतह को देखते-समझते हैं, आज उनका है। लेकिन जो सतह के नीचे चल रही अंतर्धाराओं को अभी से देख लेते हैं, कल उन्हीं का है। भविष्य कहीं आसमान से नहीं टपकता। वह वर्तमान के गर्भ से ही उपजता है।और भीऔर भी

हम सभी अपने वर्तमान से दुखी, अतीत पर मुग्ध और भविष्य को लेकर डरे हुए क्यों रहते हैं? क्या हम आज को लेकर मगन, बीत चुके पल के प्रति निर्मम और आनेवाले कल को लेकर बिंदास नहीं हो सकते?और भीऔर भी

आज के जरूरी खर्च हम कल पर नहीं टाल सकते और कल का निवेश आज रोक नहीं सकते क्योंकि उपभोग तो आज की जरूरत पूरा करने के लिए ही है जबकि निवेश आज की नहीं, कल की सोचकर आज किया जाना है।और भीऔर भी

काम पर किसी का नाम नहीं लिखा रहता। आप चूके तो कोई और कर लेगा। यह नियम साहित्य सृजन जैसे विशिष्ट काम पर भी लागू होता है। इसलिए नाम पाना है कि काम को कल पर नहीं टालना चाहिए।और भीऔर भी