हम ज्यादातर अपनी निष्क्रियता और दूसरे के कर्मों का फल भोगते हैं। जिस दिन से हम सोच-समझकर कायदे से अपने कर्मों पर उतर आते हैं, उसी दिन से सफलता की हमारी यात्रा शुरू हो जाती है। ऊंच-नीच जरूर आती है, लेकिन मंजिल मिलकर रहती है।और भीऔर भी

इंसानों की बस्ती में हम या तो अपने या दूसरों के कर्मों का नतीजा भुगतते हैं। यहां छिपकर कहीं कोई खुदा नहीं बैठा जो हमारी सदिच्छाओं को पूरा करता रहे या बिना किसी बात के हमें दंडित करता रहे।और भीऔर भी