निकलना पड़ा सिद्धार्थ को!
2010-05-22
अपने यहां लोकतंत्र की लंबी परंपरा है। यह भले ही आज खाप पंचायतों के मौजूदा स्वरूप तक आकर विकृत हो गई हो। लेकिन हम अतीत में लोगों की सच्ची भागीदारी को साथ लेकर चलते रहे हैं। ऋग्वेद काल में भी ऐसा था और बुद्ध के जमाने में भी। हमारे यहां समान हित वाले लोगों के समूह आपस में बातचीत, सलाह और मतदान के जरिए अपने मामलों में निर्णय लेते थे। बुद्ध के समय में शासन से जुड़ेऔरऔर भी