संपूर्ण कमोबेश स्थिर है। पर अंश बराबर रीसाइकल होता रहता है। बनने-मिटने-बनने का चक्र अनवरत चलता है। ये नीरस-सा चक्र ही जीवन है। यह चक्र रुक जाए तो हर तरफ हाहाकार मच जाएगा।और भीऔर भी

ज्ञान-विज्ञान की सारी जद्दोजहद प्रकृति व परिवेश के साथ पूरा तादात्म्य बनाने के लिए है। जो है, उसे समझने के लिए है। लेकिन एक के जानते ही पुराना बदल जाता है। इसलिए ज्ञान की यात्रा अनवरत है।और भीऔर भी

मैं अजर हूं, अमर हूं, अनंत हूं। तुम मुझे क्या बांटोगे? मैंने खुद को दिन-रात और ऋतुओं में बांटा है। तुमने तो महीने और साल बनाकर मेरा अनुकरण भर किया है। मैं बंटता नहीं, मैं बंधता नहीं। मैं समय हूं।और भीऔर भी

कुछ भी स्थाई नहीं। न दुख, न सुख। पौधे पर एक पत्ती इधर तो एक पत्ती उधर। छोटा से छोटा कण भी अपनी धुरी पर अनवरत घूम रहा है। इसलिए अभी कृष्ण पक्ष है तो शुक्ल पक्ष अगला है। यह लीला नहीं, नियम है।और भीऔर भी