रणनीति कम लागत, सीमित लाभ की

जिस तरह शेयरों के निवेश में पोर्टफोलियो बनाकर रखना होता है ताकि एक का नुकसान दूसरे के फायदे से बराबर होता रहे और हम अपना नुकसान कम से कम रखते हुए ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकें, उसी तरह ऑप्शन ट्रेडिंग में भी न्यूनतम नुकसान और अधिकतम मुनाफे की रणनीति बनानी पड़ती है। हम पहले ही देख चुके हैं कि ऑप्शन का भाव बाज़ार में वाजिब है या गलत, इसे परखने का कोई पक्का फॉर्मूला या लिटमस टेस्ट हमारे ही नहीं, किसी के पास नहीं है। इसलिए रिस्क को संभालने के लिए कुशल रणनीति ज़रूरी है। ऑप्शन ट्रेडिंग में अपनाई जानेवाली कुछ प्रमुख रणनीतियां हैं – कवर्ड कॉल, प्रोटेक्टिव पुट, बुल स्प्रेड, बियर स्प्रेड, बटरफ्लाई स्प्रेड, स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल। हम इनमें से कुछ के बारे में आज जानने की कोशिश करेंगे।

कवर्ड कॉल: कवर्ड कॉल की रणनीति के अंतर्गत हम संबंधित स्टॉक खरीद लेते हैं और साथ ही उसका आउट ऑफ द मनी या ओटीएम कॉल ऑप्शन (स्ट्राइक मूल्य बाज़ार मूल्य से ज्यादा) बेच देते हैं। मान लीजिए कि बाज़ार में कोई स्टॉक 100 रुपए का चल रहा है और हमने उस खरीद लिया। साथ ही हमने उसमें 105 रुपए स्ट्राइक मूल्य वाला कॉल ऑप्शन बेच दिया। इससे हमें ऑप्शन के भाव के बतौर मान लें कि 5 रुपए का प्रीमियम मिल गया। वह स्टॉक अगर बढ़कर 110 रुपए या उससे ज्यादा का हो गया, तब हमें उसे 105 रुपए में बेचना पड़ेगा। हालांकि स्टॉक और उसके कॉल ऑप्शन के प्रीमियम को मिलाकर हमें 110 रुपए मिल ही जाएंगे। लेकिन अगर यह 105 रुपए के अंदर रहता है तो स्टॉक भी हमारे पास रह जाएगा और ऊपर से प्रीमियम की आय अलग से मिल जाएगी। यह उस स्थिति में अच्छी रणनीति है जब हमारा यह आकलन हो कि स्टॉक अगले सेटलमेंट तक बढ़ेगा ज़रूर, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं।

प्रोटेक्टिव पुट: प्रोटेक्टिव पुट की रणनीति में हमारे पास या तो स्टॉक होता है या हम उसे बाज़ार से खरीद लेते हैं। साथ ही हम इस स्टॉक का ओटीएम पुट ऑप्शन (जिसका स्ट्राइक मूल्य बाज़ार मूल्य से कम हो) खरीद लेते हैं। यह एक तरह की बीमा पॉलिसी है। मान लें कि स्टॉक का बाज़ार मूल्य 100 रुपए है तो उसे खरीदने के साथ उसमें 95 रुपए स्ट्राइक मूल्य वाला पुट ऑप्शन खरीद लेते हैं। इस तरह हम प्रीमियम या ऑप्शन का भाव देकर स्टॉक के गिरने की स्थिति में उससे हो सकने वाला घाटा सीमित कर लेते हैं। वहीं, अगर स्टॉक ऊपर चला जाए तो हमारा प्रीमियम डूब जाता है। लेकिन अगर स्टॉक ज्यादा ही गिर जाए, मान लें कि 85-90 पर आ जाए तो उसका ओटीएम ऑप्शन अब आईटीएम हो जाएगा और हम उसे बेचकर मुनाफा कमा लेंगे। यह उस स्थिति में अच्छी रणनीति है जब हमें स्टॉक में ज्यादा गिरावट का अंदेशा है।

ध्यान दें कि कवर्ड कॉल और प्रोटेक्टिव पुट, दोनों ही रणनीतियों पर अमल के लिए ज़रूरी है कि उस स्टॉक के कम से कम एक लॉट के बराबर शेयर हमारे पास हो और यह स्टॉक डेरिवेटिव या एफ एंड ओ सूची के लिए निर्धारित 144 कंपनियों में शामिल हो। मसलन, एसीसी में डेरिवेटिव ट्रेडिंग के लिए लॉट 400 शेयरों का है तो इसके कम से कम 400 शेयर हमारे पास कैश सेगमेंट में होने चाहिए।

बुल स्प्रेड: बुल स्प्रेड में हम किसी स्टॉक का कॉल ऑप्शन खरीदते हैं। साथ ही उससे ज्यादा स्ट्राइस मूल्य वाला कॉल ऑप्शन बेच देते हैं। मान लीजिए कि बाज़ार में कोई स्टॉक 100 रुपए पर ट्रेड हो रहा है तो हमने 100 रुपए के स्ट्राइक मूल्य वाला कॉल ऑप्शन खरीद लिया। साथ ही 105 रुपए के स्ट्राइक मूल्य वाला कॉल ऑप्शन बेच दिया। चूंकि हमने 100 रुपए के स्ट्राइक मूल्य पर स्टॉक का कॉल ऑप्शन खरीद रखा है तो स्टॉक 100 रुपए से जितना ज्यादा बढ़ेगा, उतना ज्यादा हमारा मुनाफा बढ़ेगा क्योंकि हमारे पास उसे 100 रुपए में खरीदने का अधिकार है। लेकिन अगर वह ज्यादा नहीं बढ़ता या गिर जाता है तो हमने 105 रुपए स्ट्राइक मूल्य का कॉल ऑप्शन बेच रखा है। ऐसे में उसका प्रीमियम हमें मिल जाएगा। इस तरह बुल स्प्रेड के जरिए हम अपने लाभ की सीमा बांध लेते हैं। यह रणनीति उस स्थिति में लाभप्रद हो सकती है जब हमें लगे कि स्टॉक बढ़ेगा ज़रूर, लेकिन ज्यादा नहीं। इसमें भी चूंकि हम कॉल ऑप्शन बेच रहे हैं। इसलिए उस स्टॉक का कम से कम एक लॉट हमारे पर कैश सेगमेट में होना चाहिए। बुल स्प्रेड रणनीति अपनाकर हम अपनी लागत कम करने में सफल रहते हैं।

बियर स्प्रेड: बियर स्प्रेड रणनीति के अंतर्गत हम किसी स्टॉक का पुट ऑप्शन खरीदते हैं और साथ ही कम स्ट्राइक मूल्य वाला उसका पुट ऑप्शन बेच देते हैं। इसमें मामला बुल स्प्रेड का एकदम उल्ट होता है। मान लीजिए कि हमने किसी स्टॉक में 100 रुपए के स्ट्राइक मूल्य वाला पुट ऑप्शन खरीदा और साथ ही 95 रुपए के स्ट्राइक मूल्य वाला पुट ऑप्शन बेच दिया जिस पर हमें खास प्रीमियम मिल गया। अगर स्टॉक एक्सपायरी के दिन 95 रुपए के ऊपर बंद होता है तो जाहिर है कि पुट ऑप्शन खरीदनेवाला बाज़ार से कम भाव यानी 95 रुपए पर बेचने के अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं करेगा तो उसका प्रीमियम हमें मिल जाएगा। साथ ही अगर स्टॉक 100 रुपए से नीचे बंद होता है तो हम उसे 100 रुपए पर बेचकर मुनाफा कमा लेंगे। यह रणनीति तब कारगर होती है, जब हमें लगे कि स्टॉक नीचे गिर सकता है, लेकिन ज्यादा नहीं। पुट ऑप्शन एक साथ खरीदने-बेचने का तरीका अपनाकर हम अपनी लागत घटाकर सीमित मुनाफा कमा सकते हैं।

इस तरह बुल और बियर स्प्रेड की रणनीति में कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शन का सहारा लेते हुए कोई ट्रेडर बाज़ार के बढ़ने और गिरने के आकलन के साथ अपनी लागत कम कर सकता है। हालांकि इन दोनों ही रणनीतियों में उसे अपने मुनाफे की सीमा बांध देनी होती है। ऑप्शंस ट्रेडिंग की बाकी रणनीतियों पर चर्चा हम बाद में जारी रखेंगे।

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