टाटा मोटर्स डीवीआर में डिस्काउंट!

वयस्क मताधिकार में हर 18 साल के नागरिक को वोट देने का हक है। उसी तरह कंपनियों के शेयरधारकों को कंपनियों के फैसलों में वोट देने का हक होता है। फर्क इतना है कि यहां शेयरों की खास श्रेणियों में मताधिकार की स्थिति बदलती रहती है। प्रेफरेंशियल शेयर का नाम आप लोगों ने सुना ही होगा। एक अन्य तरह के शेयर होते हैं डीवीआर (डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स) शेयर। आम शेयरों में तो हर शेयर पर एक वोट होता है। लेकिन डीवीआर शेयरों में वोटिंग का अधिकार इनसे कम होता है। कंपनी इसकी भरपाई इन शेयरों पर अतिरिक्त लाभांश देकर करती है।

आज हम एक ऐसे ही शेयर की चर्चा करने जा रहे हैं। वो है टाटा मोटर्स का डीवीआर। टाटा मोटर्स ने 2008 में राइट्स इश्यू के तहत अपने शेयरधारकों को कुल 6.41 करोड़ सामान्य व डीवीआर शेयर जारी कर 4145 करोड़ रुपए जुटाए थे, जिसका मकसद जैगुआर व लैंड रोवर के विदेशी अधिग्रहण का आंशिक वित्त पोषण करना था। इसमें कंपनी के सामान्य शेयर 340 रुपए और डीवीआर शेयर 305 रुपए पर जारी किए गए। डीवीआर शेयरों पर कंपनी के फैसलों में वोटिंग का अधिकार 1/10 रखा गया है। यानी, एक सामान्य शेयर पर एक वोट का हक है तो दस डीवीआर शेयरों पर एक वोट का हक मिला। लेकिन डीवीआर शेयरधारकों को अपने वोटिंग अधिकार छोड़ने के एवज में सामान्य शेयरधारकों से 5 फीसदी ज्यादा लाभांश देने का प्रावधान है।

टाटा मोटर्स के डीवीआर शेयर नवंबर 2008 में स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्ट हो गए। ज्यादातर इनकी ट्रेडिंग नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में होती है। माना गया था कि इश्यू के वक्त जिस तरह डीवीआर शेयर का मूल्य सामान्य शेयर से करीब 10 फीसदी कम रखा गया था, उसके अनुरूप ये बाजार में सामान्य शेयरों से दस फीसदी डिस्काउंट पर चलते रहेंगे। लेकिन टाटा मोटर्स का डीवीआर अपनी लिस्टिंग के बाद से औसतन 34 फीसदी डिस्काउंट पर चलता रहा है। यही नहीं, जनवरी 2011 से ही इन शेयरों का भाव सामान्य शेयरों से तकरीबन 40 फीसदी कम पर चलने लगा। उसी वक्त मीडिया से लेकर एनालिस्टों तक ने इस विसंगति पर सवाल उठाया। लेकिन सामान्य व डीवीआर शेयरों के भावों का अंतर बढ़ता ही जा रहा है।

इन भारी अंतर के बारे में कुछ जानकारों का कहना है कि डीवीआर शेयर राइट्स इश्यू के तहत तब दिए गए थे जब बाजार लेहमान संकट के बाद गिरावट के दौर में था और इनका अधिकांश हिस्सा (80 से 85 फीसदी) खुद प्रवर्तक कंपनी, टाटा संस ने लिया था। डीवीआर का ताजा भाव पता नही। लेकिन पिछले शुक्रवार 9 दिसंबर को जहां टाटा मोटर्स के सामान्य शेयर का भाव एनएसई में 183 रुपए था, वहीं डीवीआर का भाव 95.35 रुपए था। यह करीब-करीब 48 फीसदी का डिस्काउंट है।

बाजार के जानकार बताते हैं कि यह डिस्काउंट कभी भी 46-47 फीसदी के ऊपर नहीं गया था। अतीत में जब भी कभी डिस्काउंट 46 फीसदी तक गया था और ऐसा पहले आठ-दस बार हो चुका है, फौरन डीवीआर के भाव बढ़े हैं। इश्यू के वक्त का 10 फीसदी डिस्काउंट को विशेष परिस्थितियों की देन मान लें तो बाद में टाटा मोटर्स के सामान्य व डीवीआर शेयरों के भावों का अंतर 34 फीसदी रहा है। अगर ऐतिहासिक रूझान कायम रहा तो या तो टाटा मोटर्स के सामान्य शेयर नीचे आएंगे या डीवीआर शेयरों का भाव बढ़ेगा ताकि बीच का अंतर कम हो सके।

अगर डीवीआर 34 फीसदी के औसत अंतर पर आता है तो उसका भाव अभी की स्थिति में भी 121 रुपए होना चाहिए, जबकि वो अभी 95 रुपए चल रहा है। इस तरह डीवीआर शेयरों के भाव यहां से कम के कम 26 रुपए यानी 27 फीसदी से ज्यादा बढ़ने चाहिए। रिस्क-रिवार्ड अनुपात निवेश के पक्ष में है। ऊपर से इसमें लाभांश यील्ड भी 4 फीसदी से ऊपर है। जानकार कहते हैं कि भले ही टाटा मोटर्स के डीवीआर व समान्य शेयरों का यह अंतर हमारे शेयर बाजार के अधूरेपन को साबित करता हो, लेकिन यह किसी भी निवेशक के सामने आर्बिट्रेज का शानदार मौका है।

मगर दिक्कत यह है कि बाजार का अधूरापन है तो एक सच। कोई इसके जाल को कैसे तोड़ सकता है? जानकार तो इस साल जनवरी से ही लगातार यही बात कह रहे हैं। तब टाटा मोटर्स का सामान्य शेयर 812 रुपए पर था, जबकि डीवीआर का भाव 510 रुपए चल रहा था यानी 37.19 फीसदी का डिस्काउंट। लेकिन तब से लेकर शेयरों के भाव का अंतर बढ़ता ही जा रहा है। अभी नवंबर महीने के अंत में टाटा मोटर्स का डीवीआर 110 रुपए पर था। दिसंबर के पहले हफ्ते में ही करीब 13 फीसदी घटकर 95 रुपए पर आ गया।

बाजार में हल्की-सी चर्चा है कि कुछ ऑपरेटरों के जरिए टाटा समूह ही डीवीआर शेयरों को बटोरना चाहता है ताकि बाद में उन्हें खरीद सके। लेकिन पहले यह भी कहा गया था कि टाटा संस अपने डीवीआर शेयर निकाल रहा है। इसलिए उसके भाव लगातार गिर रहे हैं और सामान्य शेयरों के साथ डिस्काउंट बढ़ता जा रहा है। बड़ा उलझा हुआ पेंचीदा मामला है। खैर, इस बीच सितंबर 2011 की तिमाही तक का सच यह है कि टाटा मोटर्स के डीवीआर में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की हिस्सेदारी प्रवर्तकों से ज्यादा हो चुकी है। स्टॉक एक्सचेंजों पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार टाटा मोटर्स के डीवीआर में एफआईआई का निवेश 27.04 फीसदी हो चुका है, वहीं प्रवर्तकों के पास 9.10 फीसदी डीवीआर ही रह गए हैं। सीधे-सीधे 17.94 फीसदी का अंतर।

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