काम ऐसे करो जैसे कि तुम्हें धन चाहिए ही नहीं। प्यार ऐसे करो जैसे कि तुम्हें कभी चोट ही नहीं लगती। और, नाचो ऐसे जैसे कि तुम्हें कोई देख ही नहीं रहा।
जो लोग नियमित रूप से अर्थकाम पढ़ते होंगे, उन्होंने यह वाक्य जरूर पढ़ा होगा। अपुन इसी सोच के हैं। अर्थकाम की धुन लग गई तो बस यही बात छाई रही कि कैसे आपके लिए बेहतर से बेहतर सूचना, ज्ञान व जानकारी पेश कर दूं। लगा रहा निरंतर, अनवरत। आपके लिए। अब ठीक पूरे 18 महीने, 18 दिन, 18 घंटे व 18 मिनट के बाद आप से मुखातिब हूं अर्थकाम को चलाने में आपका सहयोग मांगने के लिए। जी हां, यह काम आपके सहयोग के बिना अपनी मंजिल पर नहीं पहुंच सकता।
पिछली बार आपको पुकार लगाई थी तो आपने ऐसा उत्साह बढ़ाया कि मैं सातवें आसमान पर पहुंच गया। किसी ने कहा कि उसे अर्थकाम से नवभारत टाइम्स या भास्कर से ज्यादा सटीक जानकारी मिल जाती है तो किसी ने कहा कि आपकी बात का अंत दुनिया के अंत के साथ होना चाहिए, उससे पहले नहीं। और भी बहुत सारे संदेश निजी मेल पर आए। ज्यादा कुछ नहीं, बस मैं आपको वचन देता हूं कि अर्थकाम तब तक जारी रहेगा, जब तक अपने समाज में वित्तीय साक्षरता की जरूरत बाकी है। यह तब तक चलता रहेगा, जब हर हिंदुस्तानी नागरिक राजनेताओं से लेकर धंधेबाजों तक के आर्थिक झूठ को पकड़ने के काबिल नहीं बन जाता।
इस बीच तिनका-तिनका जोड़कर अर्थकाम बनता जा रहा है। भरोसे का एक विराट मंच आकार ले रहा है जहां आकर आम हिंदुस्तानी को किसी दिन वह दृष्टि मिल जाएगी, जिससे वह अपनी बचत को सही तरीके से लगाकर अपना भविष्य सुरक्षित बना पाएगा, देश के आर्थिक ताने-बाने और गुत्थियों को समझकर गलत फैसलों पर आवाज उठा सकेगा, सही नीतियों को बनाने में भागीदार बन सकेगा। यही नहीं, जहां उसे बदलते जमाने के हिसाब से अपने मन को भी ढालने का संबल भी मिलेगा। वित्तीय रूप से साक्षर, आर्थिक रूप से सबल और मानसिक रूप से मुक्त बन सकेगा।
हमारा ध्येय है – आपकी दुनिया की देखभाल, धन की, मन की। यह नारा नहीं, वो लक्ष्य है जो हमारी सारी गतिविधियों के केंद्र में है। हम अभी तक अपना श्रम और समय लगाकर लगातार इस लक्ष्य की तरफ बढ़ रहे हैं। मंजिल बहुत दूर है। आगे बढ़ने के लिए अब आपके सहयोग की जरूरत है क्योंकि जो काम आपको ध्यान में रखकर किया जा रहा है, वह आपके सहयोग के बिना पूरा नहीं हो सकता।
तो बस अब बारी आपकी है। आप एक रुपए से लेकर 100 रुपए और उसके ऊपर कितना भी सहयोग कर सकते हैं।. सारा विवरण ऊपर कोने में मासूम से बाल उल्लू पर क्लिक करने पर दिख जाएगा। वैसे, अपने यहां अजीब हाल है। एक तरफ उल्लू को लक्ष्मी की सवारी मानते हैं, दूसरी तरफ उल्लू बनाने को मूर्ख बनाना माना जाता है। इसी मुहावरे पर एक ऑनलाइन बीमा ब्रोकर फर्म ने बड़ा ही बेहूदा विज्ञापन चला रखा है। खैर, मैं मानता हूं और यही सच है कि उल्लू बेहद नेक और बुद्धिमान पक्षी है। इकलौता वही पक्षी है 360 डिग्री पर गर्दन घुमाकर घनघोर अंधेरे में भी देख सकता है। इसी मसले पर मैंने पहले लिखा भी था कि हमें कौए की नहीं, उल्लू की दृष्टि की जरूरत है।
अर्थकाम की अब तक की उपलब्धि के बारे में आप ही बेहतर बता सकते हैं। मेरा तो बस यही कहना है कि हमारी शुरुआत के बाद हिंदी के दोंनों बिजनेस चैनलों ने एनालिस्टों व ब्रोकरों से अलग हटकर स्टॉक्स का स्वतंत्र विश्लेषण पेश करना शुरू किया है। वित्तीय साक्षरता के अभियान तेज हो रहे है। सरकार में काम की हिंदी के इस्तेमाल को लेकर सर्कुलर जारी हुआ है। दूरदराज के लोगों ने शेयरों के निवेश के प्रति दिलचस्पी जताई है। लेकिन औरों और हम में फर्क बस इतना है कि वे मौके को भुनाने की कोशिश में लगे हैं, जबकि हम मौके बनाने में लगे हैं।
मुझे यह बात स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं कि मुझसे कहीं ज्यादा काबिल लोग आप लोगों के बीच होंगे। लेकिन वह काबिलियत जो सिर्फ अपने काम आएं, औरों के लिए नहीं, वह आखिर किस काम की? मैं चाहता हूं कि आप अपना हुनर व्यापक हिंदी समाज को बढ़ाने में लगाएं। आगे आएं और अर्थकाम को नई मंजिल तक पहुंचाने में योगदान दें। कई लेखक और जानकार स्वेच्छा से अपने मोती-माणिक हमें भेज ही रहे हैं। आर्थिक अंशदान का अपना महत्व है और ज्ञानदान की अपनी अहमियत है।
आपके निरतंर सहयोग का आकांक्षी
अनिल [संपादक, अर्थकाम]
sir
Aapka portal padha.. kafi satik aur kafi aasan bhasha me aarthik tantra ko clear kar raha hai…
Namaskar ANIL JI !!! hamara bhi sath aapko hamesha milta rahega , vakaiiiii apne hindi mai behad achha portal banai h . jitna bhi kahe kam hi h …..aapki jai ho …….