देशी-विदेशी संस्थाएं औरों का धन ही शेयर बाज़ार में लगाकर मैनेज करती है। लेकिन लाख टके का सवाल है कि दूसरे के धन को मैनेज करने का यह काम दरअसल होता क्या है? इसमें काम यह नहीं होता कि दुनिया कैसे काम करती है, युद्ध छिड़ा है या शांति है, यहां तक कि अर्थव्यवस्था कैसे काम कर रही है, इससे भी इसका कोई मतलब नहीं होता। यहां तो बस उन स्टॉक्स को पकड़ना होता है जो दूसरे पंटरों के लिए सबसे ज्यादा आकर्षक हो सकते हैं। टेक्नोलॉज़ी का इस्तेमाल करो। दूसरे कैसे सोचते है, उनका मनोविज्ञान पकड़ों, कैसे काम करते हैं, धन का प्रवाह समझो और फिर उसमें दूसरों से जुटाया गया धन भी झोंक दो। ये सारी चीजें, सारा बाज़ार व्यवहार अपने सिस्टम में शामिल कर लो। फिर सब कुछ रूटीन हो जाता है। हां, अपने सिस्टम को ज़रूरत समय, नई जानकारियों व टेक्नोलॉज़ी के हिसाब से बराबर अपग्रेड करते रहना पड़ता है। संस्थाएं यह काम बराबर करती रहती हैं। रिटेल ट्रेडर को उस्तादों की यह चालाकी देर-सबेर सीख लेनी चाहिए। तभी वह शेयर बाज़ार के कमा सकता है। नहीं तो ताज़िंदगी गंवाता ही रहेगा। अब बुधवार की बुद्धि…
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