हम हिंदुस्तानी जुगाड़ तंत्र में बहुत उस्ताद हैं। फाइनेंस और शेयर बाज़ार दुनिया में उद्योगीकरण में मदद और उसके फल में सबकी भागीदारी के लिए विकसित हुए। लेकिन हमने उसे भोलेभाले अनजान लोगों को लूटने का ज़रिया बना लिया। इसलिए शेयर बाज़ार की ठगनेवाली छवि हवा से नहीं बनी है। पिछले हफ्ते हमारे एक सुधी पाठक के एस गुप्ता जी ने एक किस्सा लिख भेजा कि शेयर बाज़ार में पैसा कैसे डूबता है। वो किस्सा यूं है…
एक बार एक आदमी ने गांववालों से कहा कि वो एक कबूतर के 10 रुपए देगा। ये सुनकर सभी गांववाले पास के जंगल की ओर दौड़ पड़े और कबूतर पकड़-पकड़ कर उस आदमी को बेचने लगे। कुछ दिन बाद यह सिलसिला धीमा पड़ने लगा तो उस आदमी ने बोली बढ़ाकर कहा कि वो एक-एक कबूतर के लिए 20 रुपए देगा। लोग फिर कबूतर पकड़ने में जुट गए। लेकिन कुछ दिन बाद मामला फिर ठंडा हो गया। अब उस आदमी ने कहा कि वो कबूतरों के लिए 50 रुपए देगा। पर, चूंकि उसे शहर जाना है, इसलिए यह काम उसका असिस्टेंट देखेगा। पांच गुना दाम सुनकर गांववाले तो बावले हो गए। लेकिन पहले ही लगभग सारे कबूतर पकडे जा चुके थे तो उन्हें कोई हाथ नही लगा। तब उस आदमी का असिस्टेंट बोला, “आप लोग चाहें तो सर के पिंजरे में से 40-40 रुपए में कबूतर खरीद सकते हैं। जब सर आ जाएं तो 50-50 रुपए में बेच दीजिएगा।” गांव वालों को यह प्रस्ताव भा गया और उन्होंने सारे कबूतर 40-40 रुपए में खरीद लिए। अगले दिन न वहां कोई असिस्टेंट था और न ही कोई सर। बस कबूतर ही कबूतर…
यह किस्सा लाखों निवेशकों (मैं भी उसमें से एक) के दिल के बड़ा करीब है क्योंकि उनके पास कबूतर नहीं, कबूतर के पंख ही बचे हैं। 500 का शेयर 5 रुपए या 50 पैसे का हो जाए तो उन्हें ऐसा ही लगेगा न! दरअसल, यह भारत का नहीं, विदेश का किस्सा है। मूल किस्से में कबूतर की जगह बंदर हैं और इसे शेयर बाज़ार नहीं, हेज फंड मैनेजरों के झांसे को खोलने के लिए निकाला गया था। इनके बारे में एक और किस्सा चलता है। एक किसान की गाय मर गई। वह उसे फेंकने जा रहा था। रास्ते में उसे एक हेज फंड मैनेजर मिल गया। उसने कहा कि आप फेंकते क्यों हो, इसे मुझे 200 डॉलर में बेच दो। किसान तो गदगद हो गया कि उसे मरी हुई गाय के भी 200 डॉलर मिल रहे हैं।
अब उस हेज फंड मैनेजर ने अखबारों में छोटा-सा विज्ञापन छपवाया कि 10 डॉलर में गाय बेच रहा है। लेकिन गाय एक ही है इसलिए सफल खरीदार का फैसला लॉटरी से किया जाएगा। जब कोई गाय 1000 डॉलर से कम की न मिलती हो तो इस गाय को खरीदने के लिए करीब 5000 लोगों में खुशी-खुशी इस हेज मैनेजर के खाते में 10-10 डॉलर जमा करा दिए। इस तरह उसके खाते में आ गए 50,000 डॉलर। एक ग्राहक के नाम लॉटरी निकली तो वह गाय लेने पहुंचा। लेकिन गाय को मरा देखकर वह भड़क गया। इस पर हेज फंड मैनेजर ने कहा कि उखड़ते क्यो हो भाई। मैं तुम्हारे 10 डॉलर और तुम्हें हुई परेशानी के लिए 10 डॉलर ऊपर से दे देता हूं। ग्राहक खुशी-खुशी वापस चला गया। इस तरह चंद दिनों की कसरत में हेज फंड मैनेजर ने मरी गाय से कमा लिए 49,500 डॉलर क्योंकि 200 डॉलर गाय के मालिक किसान को दिए थे और 280 डॉलर विज्ञापन वगैरह पर खर्च हुए।
यह सच है कि अपने यहां शेयर बाज़ार ही नहीं, बैंकिंग, बीमा व म्यूचुअल फंड के धंधे में भी इसी तरह आम लोगों का शिकार किया जा रहा है। यह काम कैसे वे बेधड़क डंके की चोट पर करते हैं, इसका ताज़ातरीन नमूना है आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड का पूरे पेज़ का विज्ञापन। असली पैमाना होता है कि इक्विटी फंड का एनएवी (शुद्ध आस्ति मूल्य) मानक सूचकांक या बेंचमार्क से कितना बढ़ा है। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड ने विज्ञापन निकाला है कि 100% इक्विटी फंडों ने पांच व दस साल में अपने बेंचमार्क को मात दी है। लेकिन उसने इसके सबूत के तौर पर एनएवी नहीं, एयूएम (एसेट अंडर मैनेजमेंट) का आंकड़ा पेश किया कि कैसे उसके इक्विटी फंडों ने एक, तीन, पांच व दस सालों में अपने बेंचमार्क को पछाड़ा है।
पहली बात कि किसी भी बेंचमार्क (सेंसेक्स या निफ्टी वगैरह) का कोई एयूएम नहीं होता। इसलिए उससे तुलना नहीं की जा सकती। दूसरे, एयूएम का मतलब होता है कि किसी फंड में निवेशकों से कुल कितनी रकम जमा करवाई गई है। इससे निवेशक की जेब नहीं, म्यूचुअल फंड का धंधा चमकता है क्योंकि जितनी ज्यादा रकम, उतना ज्यादा कमीशन और फंड मैनेजमेंट शुल्क। असल में यही तो पेंच है कि म्यूचुअल फंड केवल एयूएम को बढ़ाने में लगे रहते हैं। फंड का एनएवी पिटता रहे, निवेशकों का धन डूबता रहे, इसकी उन्हें कोई खास परवाह नहीं होती। कमाल की बात है कि आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड ने अपनी लूट का आधार बढ़ने को ही निवेशकों के भले के सबूत के बतौर पेश कर दिया! पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी को इसका जवाब मांगना चाहिए। लेकिन यहां कहां किसको आम निवेशकों के हितों की चिंता करने की फुरसत है।
लेकिन लूट और झांसे का यह सिलसिला लंबे समय तक नहीं चल सकता क्योंकि इससे आम निवेशकों की जेब ही नहीं, पूरे देश का भविष्य खोखला होता चला जाएगा। शेयर बाज़ार का विस्तार इसलिए ज़रूरी है ताकि नए-नए उदयमों को आम लोगों की रिस्क पूंजी का सहारा मिल सके। इससे छोटी-छोटी जगहों पर पनप रही उद्यमशीलता को प्रोत्साहन मिलेगा और रोज़गार के नए-नए अवसर पैदा होंगे। अभी तो हो यह रहा है कि उद्यमशीलता बैंकों और फाइनेंसरों के चंगुल में पड़कर दम तोड़ दे रही है। फिर भी हमारी अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र और लघु उद्योगों का दबदबा दिखाता है कि भारतीय खून में उद्यमशीलता का कितना जीवट है।
इस जीवट को खिलने का माकूल माहौल व आधार मिल सके, इसके लिए शेयर बाज़ार और फाइनेंस क्षेत्र का स्वस्थ विकास जरूरी है। इसके साथ ही यह भी मन से निकाल दीजिए कि शेयरों में निवेश या ट्रेडिंग जुआ खेलने जैसा है। जब आप अंधेरे या हवा में तीर चलाते हैं तो यकीनन जुआ खेलते हो। लेकिन जब आप सोच-समझकर, बढ़ने या गिरने की प्रायिकता के आकलन के बाद अपना धन लगाते हैं तो यह जुएबाज़ी नहीं, बिजनेस बन जाता है। वो बिजनेस जिससे देश की आर्थिक धमनियों में रक्त का संचार होता है जिसके रुकने से अर्थव्यवस्था का गला घुट सकता है और करोड़ों बेरोज़गारों की फौज घुट-घुटकर मरने को अभिशप्त हो सकती है। आम लोगों में रिस्क पूंजी की समझ का बनना ज़रूरी है, नहीं तो विदेशी निवेशक संस्थाएं (एफआईआई) भारत में आर्थिक विकास से निकले मक्खन को सस्ते धन और दलाल सरकार की बदौलत अनंत समय तक बटोरती रहेंगी।
Hats off for such a good & great article with simple narration ..heartily thanks …