सारी लिस्टेड मीडिया कंपनियों को बताना होगा कि कॉरपोरेट क्षेत्र के साथ उन्होंने किस तरह की ‘प्राइवेट ट्रीटी’ कर रखी है। पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की सहमति ने यह नियम बना दिया है। सेबी का कहना है कि बहुत सारे मीडिया समूहों ने कंपनियों के साथ गठबंधन कर रखे हैं। खासकर ऐसे रिश्ते उन कंपनियों के साथ हैं जो पहले से लिस्टेड हैं या पब्लिक ऑफर लानेवाली हैं। ये कंपनियां कवरेज के लिए मीडिया समूहों के साथ विज्ञापन, न्यूज रिपोर्ट, एडवर्टोरियल जैसे तरीकों से गठजोड़ करती हैं और इसके लिए शेयर, वारंट या बांड वगैरह देने तक का तरीका अपनाती है। ऐसा प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों तक में हो रहा है।
सेबी का कहना है कि इससे हितों का टकराव पैदा होता है और प्रेस की स्वतंत्रता व निष्पक्षता पर आंच आती है। मीडिया संगठन इसके बाद संबंधित कंपनी के बारे में खबर या संपादकीय में पक्षपात बरतने लगते हैं। मीडिया कंपनी तो इससे अपना व्यावसायिक हित साध लेती है, लेकिन इससे प्रतिभूति बाजार के निवेशक इससे गुमराह हो सकते हैं। सेबी का कहना है कि उसका दायित्व निवेशकों के हितों की हिफाजत करना है। इसलिए बिना किसी खुलासे के अगर मीडिया कंपनियों किसी दूसरे की ब्रांडिंग में मदद करती हैं तो यह वित्तीय बाजार व निवेशकों के हित में नहीं होगा।
सेबी ने शुक्रवार को जारी सूचना में कहा है कि निर्धारित मानकों के अनुसार पत्रकार को रिपोर्ट की जानेवाली कंपनी से जुड़े हितों का खुलासा करना पड़ता है। लेकिन मीडिया कंपनियों पर अभी तक यह बताने की कोई बाध्यता नहीं है कि वह कवर की जानेवाली कंपनी में हिस्सेदारी रखती है या नहीं, या उसके साथ उसके किसी किस्म के व्यावसायिक करार हैं। असल में कुछ समय पहले अखबारों द्वारा पैसे लेकर खबर छापने की खबरें तो खूब उछाली गई थीं, लेकिन टीवी न्यूज चैनल बराबर सामान्य कवरेज के लिए भी कंपनियों या व्यक्तियों से अच्छी-खासी रकम लेते हैं। शेयर खरीदने-बेचने की टिप्स तक पैसे लेकर दी जाती है। पत्रकार ही नहीं, मीडिया समूह के मालिक तक कंपनियों के साथ ‘बल्क डील’ करते हैं।
सेबी ने बहुत सोच-समझ कर यह फैसला किया है। किसी भी विवाद से बचने के लिए उसने करीब छह महीने पहले 22 फरवरी 2010 को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ एक बैठक की और दिशानिर्देश भी काउंसिल के जरिए जारी करवाए हैं। प्रेस काउंसिल ने ये दिशानिर्देश 2 अगस्त 2010 को जारी किए हैं। इनमें साफ कहा गया है कि मीडिया कंपनी को टेलिविजन या अखबार की खबर, लेख या संपादकीय में बताना होगा कि संबंधित कंपनी में उसका कितना हिस्सा है। अगर उसने कुछ कंपनियों के साथ ‘प्राइवेट ट्रीटी’ कर रखी है तो उसे बाकायदा अपनी बेवसाइट पर सूचना देनी होगी कि किस कंपनी में उसका कितना हिस्सा है। अगर मीडिया समूह का कोई नामित व्यक्ति किसी कंपनी के निदेशक बोर्ड में शामिल है तो उसे इसकी भी अनिवार्य जानकारी देनी होगी।
बता दें कि इस समय टीवी18, एनडीटीवी, टीवी टुडे, एचडी मीडिया, जागरण प्रकाशन, डीबी कॉर्प और डेक्कन क्रॉनिकल जैसे कई मीडिया कंपनियां शेयर बाजारों मे लिस्टेड हैं जिनके व्यावसायिक हित तमाम सारी दूसरी कंपनियों से जुड़े हुए हैं। इन हितों को बचाने के लिए ये कंपनियां अपनी पूरी संपादकीय नीति को ताक पर रख देती हैं। सेबी ने उनके इस व्यवहार पर अंकुश लगाने की कोशिश की है। लेकिन मीडिया समूहों के स्पष्ट राजनीतिक हित भी होते हैं, जिस पर लगाम कसना प्रेस काउंसिल का काम है।