गजब स्थिति है। सब कुछ ऐड-हॉक है, तदर्थ है। लेकिन जनता को सपना बेचे रहे हैं 1947 में देश को विकसित बनाने का। चुनाव हैं तात्कालिक। भाजपा कार्यकर्ताओं से लेकर अफसरों व कर्मचारियों को उज्ज्वला, आयुष्मान व मुफ्त राशन जैसी सरकारी योजनाओं के प्रचार में झोंक दिया गया है। लेकिन नाम दिया गया है विकसित भारत संकल्प यात्रा। देश में ज़रूरत है कि निजी उद्योगों को शामिल करके रोज़गार की समस्या को युद्धस्तर पर हल किया जाए। लेकिन उद्योगों के लिए लाई गई प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) स्कीम। इसमें देशी-विदेशी कंपनियों को ज्यादा उत्पादन करने में टैक्स में भारी छूट जैसी सब्सिडी दी जाती है। आज के विकेंद्रित सप्लाई तंत्र के दौर में कंपनियां भारत में असेम्बलिंग ही ज्यादा कर रही हैं जिसमें ज्यादा रोज़गार का सृजन नहीं होता। सरकारी स्कीम से उनकी मौज है। जब तक पीएलआई स्कीम की सब्सिडी मिल रही है, तब तक उत्पादन करेंगी। उसके बाद फायदा उठाकर चम्पत। क्या इस स्कीम को उत्पादन के बजाय रोज़गार से नहीं जोड़ा जा सकता था? क्या पीएलआई की जगह ईएलआई (एम्प्लॉयमेंट लिंक्ड इन्सेंटिव) नहीं लाई जा सकती थी? इससे देश में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र बढ़ता और युवा पीढ़ी को सार्थक रोज़गार मिलता! अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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