दवाओं के अवैध परीक्षण पर सरकार से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने देश में दवाओं के अवैध क्लीनिकल परीक्षण पर चिंता जताई है और सरकार से इसे रोकने के लिए कदम उठाने को कहा है। कोर्ट में जस्टिस आर एम लोढ़ा और एच एस गोखले की खंडपीठ ने सोमवार को अपनी टिप्पणी में कहा, “यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार को इसे ठीक करने के उपाय करने होंगे।” पीठ ने केन्द्र सरकार और भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) से इस मामले में छह सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई की तारीख 13 जुलाई मुकर्रर की है।

सर्वोच्च अदालत डॉक्टरों के एक समूह द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि गरीबों, आदिवासियों और दलितों पर अवैध तरीके से दवाओं के क्लीनिकल परीक्षण किए जा रहे हैं। याचिका में आरोप लगाया गया है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बनाई गई दवाओं के परीक्षण के लिए इन गरीब लोगों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इनमें बहुत से कम उम्र के हैं।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि दवा बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां देश को अवैध क्लीनिकल परीक्षणों के लिए इस्तेमाल कर रही हैं क्योंकि यहां कानूनों के अनुपालन में ढिलाई बरती जाती है। बता दें कि किसी दवा को बाजार में उतारने से पहले कंपनी को इसके असर के अध्ययन के लिए क्लीनिकल परीक्षण करने होते हैं। इंदौर में अवैध दवा परीक्षणों से जुड़े कई मामलों का जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया है कि इनमें कई लोगों की जान जा चुकी है।

याचिका के अनुसार 3300 से ज्यादा मरीजों पर दवा के परीक्षण किए गए। इनमें 15 सरकारी डॉक्टरों ने भाग लिया। दस निजी अस्पतालों के करीब 40 डॉक्टर इसमें शामिल हुए। मानसिक रूप से बीमार 233 मरीजों का परीक्षण किया गया। एक दिन से 15 वर्ष की आयु के 1833 बच्चे इस परीक्षण में इस्तेमाल किए गए। परीक्षणों के लिए अकेले सरकारी डॉक्टरों को साढ़े पांच करोड़ रुपए दिए गए। इन परीक्षणों से 2008 में 288 मौते हुईं। 2009 में 637 लोग मरे और 2010 में यह आंकड़ा 597 रहा था।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में इंडियन सोसायटी फॉर क्लिनिकल रिसर्च (आईएससीआर) को फिलहाल पक्षकार बनाने से इनकार कर दिया। संस्था की तरफ से पेश हुए वकील यू यू ललित का कहना था कि अदालत को उनका पक्ष भी सुनना चाहिए। लेकिन अदालत ने इससे इनकार कर दिया। उसका कहना था, “लोग मर रहे हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।” आईएससीआर क्लीनिकल रिसर्च से जुड़े विशेषज्ञों का मंच है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *