एसबीआई तो सूरज है, सदा के लिए

अरविंद कुमार आज बहुत खुश होंगे क्योंकि उन्होंने एसबीआई के शेयर 1890 रुपए के भाव से खरीद रखे है, जबकि कल ही यह 2.8 फीसदी बढ़कर 2005.90 रुपए तक चला गया। सेंसेक्स से लेकर निफ्टी तक में शामिल इस स्टॉक में डेरिवेटिव सौदों भी जमकर होते हैं। कल इसके सितंबर फ्यूचर्स के भाव 2000.50 रुपए पर पहुंच गए। हालांकि अक्टूबर फ्यूचर्स का भाव 1999.25 रुपए और नवंबर फ्यूचर्स का 2004.65 रुपए चल रहा है। शेयर का हाल आगे क्या होगा, यह तो हमारे बाजार में सक्रिय ‘शक्तियों’ का संतुलन तय करेगा। लेकिन अभी चल रही सितंबर तिमाही एसबीआई के सारे संकट काट देगी। फिर उसकी राह एकदम साफ-शफ्फाक और चमकदार हो जाएगी।

देश के इस सबसे बड़े बैंक के बारे में क्या कहा जाए। हाथी के पांव में सबका पांव वाली बात है भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की। जिस भी निवेशक के पोर्टफोलियो में एसबीआई नहीं है, वो या तो बहुत गरीब-गुरबां होगा या उसे बाजार की समझ नहीं है। एसबीआई ने इसी महीने 1812.90 रुपए तक गिरकर शानदार मौका पेश किया था, किसी भी सामान्य निवेशक के स्वागत का। अब भी वहां से ज्यादा दूर नहीं गया है। कल उसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 500112) में 2.31 फीसदी बढ़कर 1996.20 रुपए और एनएसई (कोड – SBIN) में 2.35 फीसदी बढ़कर 1997.30 रुपए पर बंद हुआ है।

अरविंद कुमार ने फेसबुक पर मुझसे पूछा है कि क्या छह महीने में एसबीआई 2600 रुपए का स्तर दिखा सकता है? मेरा कहना है कि ठीक-ठीक शेयर कितने तक जाएगा, यह तो बड़े निवेशकों की खरीद से तय होगा। लेकिन मैं इतना जानता हूं कि सितंबर तिमाही एसबीआई के कामकाज के लिहाज आखिरी बुरी तिमाही है। खुद बैंक प्रबंधन स्वीकार कर चुका है कि चालू वित्त वर्ष की इस दूसरी तिमाही में उसका शुद्ध लाभ 2500 करोड़ रुपए के आसपास रहेगा जो साल भर पहले सितंबर 2010 की तिमाही के शुद्ध लाभ 2501.37 करोड़ रुपए के लगभग बराबर है।

ऐसे में इस तिमाही के नतीजे कोई चौंकानेवाले नहीं होंगे। लेकिन बीती जून तिमाही से सुधार का एक सिलसिला उसने शुरू किया है, जो सितंबर अंत तक संतोषजनक स्थिति में पहुंच जाएगा। आप जानते ही हैं कि बैंकों का धंधा कर्ज देकर कमाई करने का होता है। इसमें कुछ कर्ज फंस जाते हैं जिनके लिए रिजर्व बैंक के तय मानकों के हिसाब से हर बैंक को अलग से धन निकालकर रखना होता है, ताकि उस कर्ज के न लौटाए जाने की सूरत में बैंक के वजूद को कोई आंच न आए।

रिजर्व बैंक ने कह रखा है कि बैंकों को सितंबर 2011 तक अपने शुद्ध एनपीए (गैर-निष्पादित आस्तियां या डूबत ऋण) की रकम का 70 फीसदी हिस्सा अलग रखना है। जून 2011 की तिमाही में एसबीआई ने 67.25 फीसदी तक प्रावधान कर लिया है। बैंक ने तब 550 करोड़ अलग से रख दिए थे। सितंबर तिमाही में भी उसे लगभग इतनी ही रकम निकालनी पड़ेगी, तब रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित 3430 करोड़ रुपए के प्रावधान का उसका लक्ष्य पूरा होगा। मतलब यह कि बैंक को इस तिमाही तकलीफ का एक घूंट और पीना है। लेकिन इसके बाद कोई फिक्र नहीं। इसलिए पूरी उम्मीद है कि छह महीने बाद मार्च 2012 तक यह शेयर काफी ऊंचाई पर होगा। इसका अभी तक के 52 हफ्तों का उच्चतम स्तर 3515 रुपए का है जो इसने 8 नवंबर 2010 को हासिल किया था।

फिलहाल जून तिमाही के नतीजों के आधार पर एसबीआई का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का स्टैंड एलोन ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 109.20 रुपए है। इस तरह उसका शेयर 18.28 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। 20-22 के पी/ई तक पहुंचना एसबीआई के लिए सामान्य बात रही है। हालांकि वह फरवरी 2010 में 12.73 के पी/ई अनुपात पर भी ट्रेड हो चुका है। तब भी उसका भाव 1863 रुपए तक चला गया था। आप साफ देख सकते हैं कि मौजूदा भाव इसके काफी करीब है। इसलिए इसे दूरगामी लक्ष्य के लिए, कम से कम तीन साल के लिए खरीद लेना चाहिए। यूं तो ऐसे शेयर अपने वारिसों को देने के लिए रखने चाहिए। लेकिन छह महीने में इसका 2600 पर पहुंचना कोई मुश्किल नहीं है। इसमें मार्च 2012 तक 30 फीसदी रिटर्न की उम्मीद करनी चाहिए।

यह ज्योतिष की नहीं, बल्कि भरोसे की वाणी है। कारण, एसबीआई ने अपना शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) अच्छे स्तर पर बना रखा है। पूरे वित्त वर्ष 2011-12 के लिए लक्ष्य 3.5 फीसदी का है, जबकि जून तिमाही में वास्तविक आंकड़ा 3.62 फीसदी का रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है एसबीआई की पहुंच और उसके प्रति आम भारतीयों का भरोसा। उसके लगभग आधे संसाधन कासा (नकद व चालू खाता) जमा से आते हैं। कुल जमा में कासा का हिस्सा मार्च व जून तिमाही में क्रमशः 48.7 व 47.9 फीसदी रहा है। बैंक ने पहले सोचा था कि इस साल 500 करोड़ डॉलर विदेशी बाजारों से एटीएन (मीडियम टर्म नोट) से जुटाएगा। लेकिन अब इसका लक्ष्य उसने बढ़ाकर 1000 करोड़ डॉलर कर दिया है। बैंक अगले दो-तीन महीनों में अपना राइट इश्यू भी लानेवाला है।

बैंक की कुल 635 करोड़ रुपए की इक्विटी में भारत सरकार का हिस्सा 59.40 फीसदी है। एफआईआई ने इसके 10.88 फीसदी और डीआईआई ने 17.45 फीसदी शेयर खरीद रखे हैं। इसके कुल शेयरधारकों की संख्या 7,98,710 है। इसमें से 7,83,377 यानी 98.08 फीसदी एक लाख रुपए के कम लगानेवाले छोटे निवेशक हैं। हालांकि देश की इस आम पब्लिक के पास पब्लिक सेक्टर के इस सबसे बड़े बैंक के मात्र 5.97 फीसदी शेयर हैं। यह हमारे शेयर बाजार, सरकार की नीतियों और हमारी-आपकी मानसिकता का कड़वा सच है।

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