खासजन फूलते गए, आमजन खस्ताहाल

मुठ्ठी भर खासजन सरकारी कृपा और दलाली से फलते-फूलते ही जा रहे हैं, जबकि करोड़ों आमजनों की हालत पतली होती जा रही है। पिछले कुछ सालों में एक तरफ उन पर ऋण का बोझ बढ़ता गया। दूसरी तरफ उनकी खपत घटती चली गई। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 में देश के आम परिवारों पर कुल ₹9 लाख करोड़ का ऋण था। यह बोझ साल भर बाद ही 2022-23 में 76% बढ़कर ₹15.8 लाख करोड़ हो गया। इनमें से बैंकों से लिया ऋण साल भर में 7.76 लाख करोड़ से बढ़कर 12.16 लाख करोड़ और एनबीएफसी से ली गई उधारी 21,432 करोड़ से उछलकर ₹2.39 लाख करोड़ हो गई। चिंता की बात यह है कि लोगबाग सरकार की तरह ‘ऋणम् कृत्वा, घृतम् पीवेत’ की नीति पर नहीं चल रहे, बल्कि उनकी खपत घटती गई । राष्ट्रीय स्तर पर इसका पता जीडीपी में निजी अंतिम खपत व्यय (पीएफसीई) के घटते हिस्से से चलता है। सरकार की तरफ से जारी राष्ट्रीय आय व व्यय के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2023-24 में पीएफसीई घटकर जीडीपी का 55.6% रह सकता है। यह बीते वित्त वर्ष 2022-23 में 58% और उससे पहले 2021-22 में 58.1% रहा था। अब शुक्रवार का अभ्यास…

यह कॉलम सब्सक्राइब करनेवाले पाठकों के लिए है.
'ट्रेडिंग-बुद्ध' अर्थकाम की प्रीमियम-सेवा का हिस्सा है। इसमें शेयर बाज़ार/निफ्टी की दशा-दिशा के साथ हर कारोबारी दिन ट्रेडिंग के लिए तीन शेयर अभ्यास और एक शेयर पूरी गणना के साथ पेश किया जाता है। यह टिप्स नहीं, बल्कि स्टॉक के चयन में मदद करने की सेवा है। इसमें इंट्रा-डे नहीं, बल्कि स्विंग ट्रेड (3-5 दिन), मोमेंटम ट्रेड (10-15 दिन) या पोजिशन ट्रेड (2-3 माह) के जरिए 5-10 फीसदी कमाने की सलाह होती है। साथ में रविवार को बाज़ार के बंद रहने पर 'तथास्तु' के अंतर्गत हम अलग से किसी एक कंपनी में लंबे समय (एक साल से 5 साल) के निवेश की विस्तृत सलाह देते हैं। इस कॉलम को पूरा पढ़ने के लिए आपको यह सेवा सब्सक्राइब करनी होगी। सब्सक्राइब करने से पहले शर्तें और प्लान व भुगतान के तरीके पढ़ लें। या, सीधे यहां जाइए।
अगर आप मौजूदा सब्सक्राइबर हैं तो यहां लॉगिन करें...

Existing Users Log In
   
New User Registration
Please indicate that you agree to the Terms of Service *
captcha
*Required field