यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः से लेकर नारी शक्ति वंदन अधिनियम तक भारत में महिला शक्ति का बड़ा हल्ला है। लेकिन जिस देश में प्रधानमंत्री तक महिला हुई है, अभी वित्त मंत्री और राष्ट्रपति तक महिला हैं, क्या वहां महिलाएं सशक्त हुई हैं और श्रम बाज़ार में उनकी मजबूत भागीदारी है? भारत दुनिया के उन मुठ्ठी भर देशों में शुमार हैं जहां श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी भयंकर गति से घटी है। इस पतन में यूपीए और एनडीए दोनों समान रूप से भागी हैं। महिलाओं की भागीदारी 2004-05 में 29% हुआ करती थी। यह 2011-12 में 22% और 2017-18 में 17% रह गई। फिर आंकड़ों की लीपापोती होने लगी। सरकार ने जुलाई से जून तक चलनेवाला आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) शुरू कर दिया। इसके बाद श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने लगी। 2018-19 में यह 18.6%, 2019-20 में 22.8%, 2020-21 में 25.1% और 2021-22 में 24.8% पर हो गई। पिछले हफ्ते 9 अक्टूबर को ताजा पीएलएफएस की रिपोर्ट आई है। इसके मुताबिक 2022-23 में श्रम बाज़ार में सभी उम्र की महिलाओं की भागीदारी 27.8% दर्ज की गई है। निजी संस्था सीएमआईई के आंकड़े ज्यादा निराशाजनक हैं। अब बुधवार की बुद्धि…
यह कॉलम सब्सक्राइब करनेवाले पाठकों के लिए है.
'ट्रेडिंग-बुद्ध' अर्थकाम की प्रीमियम-सेवा का हिस्सा है। इसमें शेयर बाज़ार/निफ्टी की दशा-दिशा के साथ हर कारोबारी दिन ट्रेडिंग के लिए तीन शेयर अभ्यास और एक शेयर पूरी गणना के साथ पेश किया जाता है। यह टिप्स नहीं, बल्कि स्टॉक के चयन में मदद करने की सेवा है। इसमें इंट्रा-डे नहीं, बल्कि स्विंग ट्रेड (3-5 दिन), मोमेंटम ट्रेड (10-15 दिन) या पोजिशन ट्रेड (2-3 माह) के जरिए 5-10 फीसदी कमाने की सलाह होती है। साथ में रविवार को बाज़ार के बंद रहने पर 'तथास्तु' के अंतर्गत हम अलग से किसी एक कंपनी में लंबे समय (एक साल से 5 साल) के निवेश की विस्तृत सलाह देते हैं।
इस कॉलम को पूरा पढ़ने के लिए आपको यह सेवा सब्सक्राइब करनी होगी। सब्सक्राइब करने से पहले शर्तें और प्लान व भुगतान के तरीके पढ़ लें। या, सीधे यहां जाइए।
अगर आप मौजूदा सब्सक्राइबर हैं तो यहां लॉगिन करें...