जनादेश का सम्मान या पहले की ठसक!

अपने सुंदर व सुरक्षित भविष्य की आकांक्षा में डूबा सारा भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ बड़ी उम्मीद से देख रहा है कि वे भाजपा को 303 के बहुमत से 240 सीटों के अल्पमत तक सिमटा देनेवाले जनादेश का सम्मान करते हुए एनडीए सरकार के पहले बजट में कुछ मूलभूत आर्थिक सुधार करते हैं या विकसित भारत के सब्ज़बाग की पुरानी चाशनी ही फेटते रहेंगे। यह बजट इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इसमें जनाकांक्षाओं के अनुरूप अगले पांच साल में देश के आर्थिक विकास का ठोस रोडमैप पेश किया जा सकता है। सरकार चाहे तो हवाबाज़ी छोड़कर बता सकती है कि प्रति व्यक्ति आय को 2500 डॉलर से 20-22 साल में 14,000 डॉलर तक पहुंचाकर भारत को कैसे विकसित देश बनाया जाएगा। देश चाहता है कि इसमें ऐसे कदम उठाए जाएं जिनसे आम लोगों की खपत बढ़े, निजी क्षेत्र पूंजी निवेश को प्रेरित हो, मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में नई जान आए और रोज़ी-रोज़गार के अवसर बढ़ें। जीडीपी बढ़ाने के लिए सरकारी खर्च की बढ़ती डोज़ इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे भ्रष्टाचार को ही जन्म देती है। इससे मुठ्ठी भर ठेकेदारों की समृद्धि बढ़ती है। बहुत सीमित लोगों को प्रोजेक्ट चलने तक कुछ महीनों या साल भर का काम मिलता है। उसके बाद वे फिर से पैदल हो जाते हैं। नौजवानों को रोज़गार चाहिए तो किसानों को एमएसपी की कानूनी गांरटी की उम्मीद है। अब सोमवार का व्योम…

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