कहा और माना जाता है कि अपने यहां रुपया पूरी तरह बाज़ार के हवाले हैं, फ्लोटिंग विनिमय दर की व्यवस्था है। लेकिन ऐसा है नहीं। रिजर्व बैंक बराबर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए की विनिमय दर को मैनज करता है। रुपया ज्यादा न गिरे, इसके लिए विदेशी मुद्रा भंडार से बाज़ार में डॉलर डाल देता है और रुपया ज्यादा न चढ़े, इसके लिए बाज़ार से डॉलर खींच लेता है। हालांकि वो कहता है कि विनिमय दर की वोलैटिलिटी को रोकने के लिए ही फॉरेक्स बाज़ार में दखल करता है, वरना नहीं। उसका दावा है कि वो बाज़ार की शक्तियों को खुलकर काम करने देता है और तभी दखल करता है जब बाज़ार फेल होने लगता है। लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं। पहली बात तो यह है कि फॉरेक्स बाज़ार में वोलैटिलिटी या उतार-चढ़ाव किसी तरह की विसंगति या गड़बड़ी नहीं, बल्कि सीधे-सीधे डिमांड व सप्लाई के संतुलन का नतीजा है। दूसरे, भारत में साल 2008 से एक्सचेंजों को करेंसी डेरिवेटिव्स शुरू करने की इजाजत दी गई। इस समय बीएसई, एनएसई व एमसीएक्स में इन डेरिवेटिव्स की ट्रेडिंग सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक होती है। इस बाज़ार का नियंता रिजर्व बैंक है। होना यह चाहिए था कि अब तक के सोलह साल में बाज़ार परिपक्व हो जाता। लेकिन रिजर्व बैंक कुछ न कुछ खुरपेंच करता रहता है। इस साल तो उसने हद ही कर दी। अब बुधवार की बुद्धि…
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