पैरों के नीचे खिसकती ज़मीं, सब हवा में

भारतीय समाज में धन-दौलत व संपदा की संरचना बहुत तेज़ी से बदलती जा रही है। 1950-51 में देश की सालाना घरेलू बचत का 91.4% हिस्सा ज़मीन-जायदाद व सोने-चांदी जैसी भौतिक संपदा के रूप में था। 2021-22 तक यह हिस्सा घटते-घटते 38.6% पर आ गया, जबकि बाकी 61.4% घरेलू बचत बैंक डिपॉजिट, शेयर, डिबेंचर व म्यूचुअल फंड में निवेश, लघु बचत, बीमा पॉलिसी और पीएफ व पेंशन फंड के रूप में थी। इस तरह हमारी धन-दौलत का वित्तीयकरण होता जा रहा है। देश में इस वक्त म्यूचुअल फंड स्कीमो के करीब 8.4 करोड़ एसआईपी (सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) खाते हैं। शेयर बाज़ार में पंजीकृत निवेशकों की संख्या 17.12 करोड़ हो चुकी है और डीमैट खातों की संख्या 15 करोड़ के पार जा चुकी है। इसमें भी अगर पैन नंबर को आधार बनाकर देखें तो अलग-अलग निवेशकों की संख्या 9 करोड़ से ज्यादा हो गई है। आपको जानकर चौंक जाएंगे कि यह संख्या हमारे कृषिप्रधान देश में कुल किसान परिवारों की संख्या 9.21 करोड़ तक पहंचने जा रही है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि धन-दौलत व संपदा के बढ़ते वित्तीयकरण के इस दौर में शेयर बाज़ार में होनेवाली अफरातफरी या मंदी किस तरह उथल-पुथल मचा सकती है? अब मंगलवार की दृष्टि…

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