शेयर तो गिरते-उठते रहते हैं। गिरते हुए बाजार में भी तमाम शेयर बढ़ जाते हैं और बढ़ते हुए बाजार में भी कई शेयर गिर जाते हैं। जैसे, कल एनएसई निफ्टी में 38.40 अंकों की गिरावट आई, लेकिन 447 शेयरों में बढ़त दर्ज की गई। इसी तरह बीएसई सेंसेक्स में 97.76 अंकों की गिरावट के बावजूद 1184 शेयर बढ़ गए। इसलिए सूचकांकों के उठने-गिरने के चक्कर में पड़ने के बजाय यह समझना ज्यादा काम का होता है कि कोई शेयर क्यों बढ़ता है या क्यों बढ़ेगा और घटेगा तो क्यों? निवेश करना तो बाद की बात होती है। उससे पहले कंपनी की कहानी को समझना जरूरी होता है। आज कहानी त्रिवेणी ग्लास (बीएसई कोड – 502281) की।
इस स्टॉक के बारे में हमने हफ्ते भर पहले 17 अगस्त को लिखा था। उस दिन यह शेयर 9.98 फीसदी बढ़कर 13.67 रुपए पर पहुंचा तो उस पर सर्किट ब्रेकर लग गया। इसके बाद इसमें सर्किट सीमा 10 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दी गई, लेकिन इसके बावजूद यह लगातार हर दिन थोड़ा-थोड़ा बढ़कर कल मंगलवार, 24 अगस्त को 15.75 रुपए पर बंद हुआ है। हफ्ते भर में 15 फीसदी से ज्यादा की बढ़त। कंपनी घाटे में है। उसका टीटीएम ईपीएस ऋणात्मक है। हालांकि बुक वैल्यू 46.15 रुपए है। कंपनी कैसे दुर्दिन से निकल कर नई पारी की शुरुआत कर रही है, आइए देखते हैं।
12.62 करोड़ रुपए की इक्विटी वाली इस कंपनी की बिक्री कभी 200-250 करोड़ हुआ करती थी, लेकिन अब घटकर 20-30 करोड़ रुपए पर आ गई है। 2006 से कंपनी के प्रवर्तक व प्रबंध निदेशक जे के अग्रवाल का राहुकाल शुरू हुआ, जब वे इलाहाबाद फैक्टरी के एक यूनियन नेता की हत्या के आरोप में धर लिए गए। तब तक मेरठ, राजमुंदरी और इलाहाबाद के तीन संयंत्रों और 400 टन प्रतिदिन की क्षमता के साथ त्रिवेणी ग्लास भारत में फ्लोट ग्लास की दूसरी सबसे अच्छी निर्माता थी। उसके धुर प्रतिस्पर्धी सेंट गोबैन की स्थापित क्षमता 1000 टन प्रतिदिन है और उसने चेन्नई मं अपना संयंत्र लगाने पर 995 करोड़ रुपए खर्च किए हैं।
हत्या के आरोप और कर्ज के बोझ के नीचे दबे जे के अग्रवाल की स्थिति बड़ी विचित्र हो गई थी। उनके सामने आईडीबीआई से लिए गए कर्ज को सम-मूल्य पर इक्विटी में बदलने के अलावा कोई चारा नहीं था। इस समय कंपनी की इक्विटी में 31 फीसदी हिस्सा आईडीबीआई का है। आधिकारिक रूप में प्रवर्तकों का हिस्सा 7.45 फीसदी है, लेकिन समूह की कंपनियों को मिला दिया जाए तो उनका कुल नियंत्रण कंपनी की 26 फीसदी इक्विटी पर है। श्री अग्रवाल ने आईडीबीआई को वन टाइम सेटलमेंट (ओटीएस) के लिए मनाने की कोशिश की। लेकिन कामयाब नहीं हो सके। कुल ऋण 120 करोड़ रुपए का था। ओटीएस हो जाता तो मामला 60-65 करोड़ में निपट जाता। शुरुआत में आईडीबीआई 95 करोड़ रुपए का ब्याज माफ करने को तैयार हो गया था, जिसका जिक्र कंपनी की 2006-07 की बैलेंस शीट में भी है। लेकिन कंपनी प्रवर्तक इस मौके को भुना नहीं सके।
अब जे के अग्रवाल का राहुकाल कट गया लगता है। वे हत्या के आरोप से बरी हो चुके हैं। कुछ खरीदारों ने उन्हें उबारने में दिलचस्पी दिखाई है। कंपनी ने आईडीबीआई और एचएसबीसी बैंक के साथ संशोधित ओटीसी का आवेदन किया है और स्टेट बैंक व केनरा बैंक के सामने भी ऐसा आवेदन डालने वाली है। कंपनी अपना मेरठ संयंत्र फॉर्च्यून 500 की सूची में शामिल जापानी कंपनी निप्रो कॉरपोरेशन ओसाका को 20 करोड़ रुपए में बेच चुकी है और इससे कर्ज का एक हिस्सा चुका दिया है। लेकिन इतना काफी नहीं था।
इसलिए कंपनी के निदेशक बोर्ड ने 31 जुलाई 2010 को हुई बैठक में इलाहाबाद के संयंत्र को भी बेचने का निर्णय ले लिया। कंपनी का ग्रॉस ब्लॉक 222 करोड़ रुपए है और इस संयंत्र में 95 करोड़ रुपए की पूंजी लगी हुई है। सूत्रों का कहना है कि इलाहाबाद संयंत्र के लिए कंपनी को कम से कम 125 से 150 करोड़ रुपए मिलेंगे क्योंकि इसके पास गंगा एक्सप्रेस हाईवे और उ.प्र. सरकार के नए प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के सामने 70 एकड़ जमीन है। कोलकाता का पोद्दार समूह पहले अकेली इस जमीन के लिए 150 करोड़ रुपए देने की पेशकश कर चुका है।
इस सौदे के बाद पूरा कर्ज चुकाने के बाद भी जे के अग्रवाल के पास 70 करोड़ रुपए बच जाएंगे। कंपनी अपना राजमुंदरी संयंत्र चलाती रहेगी, जहां क्षमता विस्तार की पूरी गुंजाइश है। जानकारों के मुताबिक त्रिवेणी ग्लास इसके बाद साल भर में 50 करोड़ की बिक्री का स्तर हासिल कर लेगी और उसका शुद्ध लाभ 10 करोड़ रुपए पर पहुंच जाएगा। मतलब होगा 8-9 रुपए का ईपीएस। शेयर 15-16 रुपए के मौजूदा स्तर से साल-दो साल के भीतर 75-80 रुपए पर जा सकता है।