हाथियों की दौड़ में मिट्टी की मिट्टी पलीद हो जाती है। हमारे शेयर बाजार का भी यही हाल है। इसलिए अच्छा है जो छोटे निवेशक यहां से गायब हैं। यहां फिलहाल बड़ों की मार चल रही है। एफआईआई, बीमा कंपनियां व म्यूचुअल फंड दूसरों के पैसों पर खेलते हैं तो उन्हें इसके डूबने पर अंदर से कोई तकलीफ नहीं होती। उनके अधिकारियों व कर्मचारियों को मैनेज किए जा रहे फंड के कमीशन से मोटी तनख्वाह मिलती रहती है। घाटा हो या फायदा, उनकी अपनी जेब पर कोई फर्क नहीं पड़ता। एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) और कंपनियों के प्रवर्तक भी यहां के घाटे को वहां से पूरा कर लेते हैं। इसके अलावा तमाम ब्रोकर हाउसों से जुड़े लाख-दो लाख ट्रेडर भी हैं जो खुद के नहीं, दूसरों के धन पर खेलते हैं।
बाजार की गति को समझे बगैर किसी चमत्कार की उम्मीद में ये लोग शेयर बाजार में पैसा लगाते हैं। बाजार का एडिक्शन है ऐसे लोगों को। कंपनी को जानने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं। वे बस चार्ट देखकर दांव खेलते हैं। कभी-कभी दांव सही पड़ता है, ज्यादातर चूक जाता है। जिस तरह मुंबई की लोकल ट्रेनों में मजीरे की झन-झनाक पर शहर के सुदूर बाहरी इलाकों से आते यात्री भजन के उन्माद में सफर काटते हैं, उसी तरह हमारे शेयर बाजार के ऐसे निवेशक भी पिनक में रहते हैं। माहौल बनाते हैं। लेकिन इससे न तो इनका भला होना है और न ही देश का। ये ऐसा झुनझुना बजा रहे हैं जिससे किसी का कल्याण संभव नहीं।
कल्याण तभी हो सकता है जब लोगों को फाइनेंस और पूंजी बाजार का सही इस्तेमाल करने का तरीका समझाया जाए। ऐसा करने के लिए देश में स्वंतंत्र वित्तीय सलाहकारों की फौज की जरूरत है। जिस तरह लोगों के स्वास्थ्य की देखरेख के लिए डॉक्टरों की जरूरत है, उसी तरह लोगों के धन के सही नियोजन के लिए फाइनेंशियल एडवाइजरों की जरूरत है। देश में एजेंट तो 30-40 लाख जरूर होंगे। लेकिन फाइनेंशियल एडवाइजरों की संख्या 20-22 हजार से ज्यादा नहीं है। अपने यहां हर एक लाख लोगों पर 50-60 डॉक्टर हैं। लेकिन स्वतंत्र फाइनेंशियल एडवाइजर तो एक लाख पर दो भी नहीं निकलते। ऐसे में सरकार को रिटेल निवेशकों को पूंजी बाजार में लाना है तो उसे लाख-दो लाख फाइनेंशियल एडवाइजर तैयार करने का अभियान चलाना चाहिए। मगर, वह विदेशी पूंजी की कमीशनखोरी में लगी है। इससे देश का भला नहीं होनेवाला।
यह तो हुई आम बात। अब लंबे समय के निवेश की शिनाख्त। उससे पहले एक सूत्र गांठ बांध ले कि जीवन में सकारात्मक और आशावादी नजरिया रखना अच्छी बात है। लेकिन शेयर बाजार में यथार्थवादी और शंकालु नजरिया ही चलता है। यहां किसी भी चीज को हाथ लगाने से पहले ठोंक-बजाकर देख लेना जरूरी है। हमने पॉलि मेडिक्योर में निवेश की सलाह आपको इसी कॉलम में 12 अप्रैल 2012 को दी थी। तब इसका शेयर 240 रुपए के आसपास चल रहा था। छह महीने बाद 26 सितंबर 2012 को यह 345 रुपए तक जा पहुंचा और फिलहाल उसी के इर्दगिर्द डोल रहा है। बीते हफ्ते शुक्रवार, 12 नवंबर को इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 531768) में 336 रुपए और एनएसई (कोड – POLYMED) में 334.25 रुपए पर बंद हुआ है।
छह महीने में 40 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न! यह है सोच-समझकर निवेश करने का फल। आप ही बताइए कि आपको भरोसा हो जाए कि शेयर बाजार में निवेश इतना फायदा दे सकता है तो क्या आप निवेश करेंगे या नहीं? लेकिन सवाल उठता है कि इस तरह के अच्छे मौके आप तक पहुंचाएगा कौन? क्या आप खुद ऐसा करने में सक्षम हैं? निश्चित रूप से आप ऐसा करने में सक्षम हो सकते हैं, बशर्ते लालच से उबरकर कंपनियों के कामकाज की तहकीकात करने लग जाएं। दूसरा तरीका यह है कि आपके बीच भरोसेमंद फाइनेंशियल एडवाइजर पहुंचाए जाएं। हम अर्थकाम के स्तर पर इसी कोशिश में लगे हैं कि वित्तीय सलाहकारों की एक बड़ी जमात इस देश में खड़ी कर ली जाए, जिनके पास भले ही औपचारिक डिग्री न हो, लेकिन दिमाग में फाइनेंस की गहरी जानकारी, दिल में ईमानदारी और मन में दूसरों तक लाभ के सही अवसर पहुंचाने की लालसा हो। यकीनन यह पहाड़ पर सड़क बनाने जैसा मुश्किल काम है। लेकिन लोग चलना शुरू करते हैं तो चट्टानों पर भी पगडंडियां बन जाया करती हैं।
सवाल उठता है कि क्या पॉलि मेडिक्योर में इस वक्त नए सिरे से निवेश किया जा सकता है? हमारा कहना है कि अभी नहीं। इसे कम से कम उतरकर 280 रुपए के आसपास आने दीजिए। शेयरों के भाव हमेशा लहरों की तरह चलते हैं। कभी ऊपर तो कभी नीचे। हां, मजबूत कंपनियों के शेयरों की गति ऊर्ध्व होती है और कल का अधिकतम भाव आज का न्यूनतम भी बन जाता है। लेकिन पॉलि मेडिक्योर का शेयर कुछ महीने में 280 रुपए तक आ सकता है। तब इसे जरूर खरीद लेना चाहिए।
पॉलि मेडिक्योर 1995 में बनी कंपनी है। इन्फ्यूजन थिरैपी, एनेस्थीसिया, गैस्ट्रोइनटेरोलॉजी, ब्लड मैनेजमेंट, सर्जरी, यूरोलॉजी, डायलेसिस व मरहम-पट्टी जैसे कामों के लिए 75 से ज्यादा उत्पाद बनाती है। नाम और साख दोनों उसने हासिल कर ली है। हरियाणा (फरीदाबाद), उत्तराखंड (हरिद्वार) और राजस्थान (जयपुर) में उसकी उत्पादनन इकाइयां हैं। कंपनी ने बीते वित्त वर्ष 2011-12 में 208.92 करोड़ रुपए की बिक्री पर 19.26 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। चालू वित्त वर्ष 2012-13 में जून की तिमाही में उसकी बिक्री 57.78 करोड़ और सितबंर तिमाही में 62.35 करोड़ रुपए रही है, जिस पर उसका शुद्ध लाभ क्रमशः 3.05 करोड़ और 3.48 करोड़ रुपए रहा है। कंपनी का ऋण-इक्विटी अनुपात मात्र 0.37 का है। दूसरे शब्दों में उस पर कर्ज का खास बोझ नहीं है।
स्मॉल कैप कंपनी है। कंपनी की इक्विटी मात्र 11.01 करोड़ रुपए है। इसका 48.70 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है। एफआईआई और डीआईआई ने अभी तक इसे हाथ नहीं लगाया है। पब्लिक की श्रेणी में इसके 51.30 फीसदी शेयर हैं। लेकिन इसमें से रिटेल निवेशकों के पास 11.88 फीसदी शेयर ही हैं। बाकी 39.42 फीसदी इक्विटी कॉरपोरेट निकायों के पास है। जाहिरा तौर पर इस स्मॉल कैप कंपनी में सौदे छोटे-छोटे ही होते हैं। बड़े निवेशक इससे दूर हैं, लेकिन छोटे निवेशक करीब हैं। यह लंबे समय के निवेश के लिए काफी माफिक कंपनी है। लेकिन अभी इसका शेयर थोड़ा महंगा है। इसके 280 रुपए तक उतर आने का इंतजार करना ठीक रहेगा।
अंत में आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं। अगला साल आपके लिए सुख, समृद्धि और शांति का दूत बनकर आए, यही दिली ख्वाहिश है। बाकी तो सारा कुछ आपकी समझदारी और कर्मों पर निर्भर है।