डिपॉजिट घटने के दोषी आम लोग नहीं

बैंकों में डिपॉजिट के घटने की क्या वजहें हो सकती हैं? आम लोगों पर दोष मढ़ देना बड़ा आसान है कि बैंकों में अपनी बचत रखने के बजाय वे उसे अब शेयर बाज़ार व म्यूचुअल फंड में लगा रहे हैं। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि जो लोग शेयर बाज़ार व म्यूचुअल फंड में निवेश कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर ऐसे युवा हैं जो बैंकों में कभी धन रखते ही नहीं थे। बैंकों में पारम्परिक रूप से धन रखनेवालों की कमाई घट और खर्च बढ़ गए हैं। उनकी बचत हो ही नहीं रही तो वे बैंकों में क्या जमा करेंगे। निवेश प्रबंधन से जुड़ी वैश्विक फर्म नोमुरा का अलग आकलन है। उसका कहना है कि बैंकों के मुनाफे और डिपॉजिट में सीधा रिश्ता है। बैंक जो भी मुनाफा कमाते हैं, वो अंततः जमाकर्ताओं के धन को धंधे की तरफ मोड़ देने से हासिल होता है। लेकिन बैंकों का मुनाफा बढ़ता है तो उन्हें उसके अनुरूप अपनी बैलेस शीट को एजडस्ट करना होता है। ऐसे में ज्यादा मुनाफे से बैंकों का डिपॉजिट आधार घट सकता है जिसका असर उनके लोन-डिपॉजिट अनुपात (एलडीआर) पर पड़ता है। नोमुरा के मुताबिक पिछले दो सालों में बैंकिंग सिस्टम में एलडीआर के घटने की दो खास वजहें हैं बैंकों के मुनाफे का बढ़ना और रिजर्व बैंक द्वारा कम नोट छापना। यह कहना गलत है कि बैंक डिपॉजिट नहीं खींच पा रहे हैं और धन कहीं और चला जा रहा है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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