पिछले एक दशक में देश छोड़कर बाहर भाग रहे गरीबों, नौजवानों, प्रोफेशनल्स और अमीरों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ी है। खुद विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद में 21 जुलाई 2023 को बताया था कि 2022 में कुल 2,25,260 भारतीयों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ी है। 2020 में यह संख्या 85,256 थी। दो साल में ढाई गुना से ज्यादा! वित्त वर्ष 2011-12 से लेकर 2022-23 तक कुल 16,63,440 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी है। बीते साल 2023 के पहले छह महीनों में ही भारतीय नागरिकता छोड़नेवालों की संख्या 87,026 हो चुकी थी। विदेश मंत्री कहते हैं कि लोगबाग निजी वजहों से विदेशी नागरिकता ले रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में गरीब से लेकर अमीर और बेरोज़गार से लेकर प्रोफेशनल्स तक भारत छोड़कर क्यों पलायन कर रहे हैं? आखिर भारत में ऐसी क्या परिस्थितियां बन गई हैं कि उनके लिए यह देश बेगाना हो गया है? कोई भी खुशी-खुशी अपनी माटी, मुल्क और जन्मभूमि नहीं छोड़ता। फिर क्यों ऐसा है कि विदेश में बसे भारतीयों की संख्या तीन करोड़ के पार चली गई है, अनिवासी भारतीयों की संख्या अनिवासी चीनियों से भी ज्यादा हो चुकी है? दस साल से बन रहे नए भारत का यह कैसा विकास है कि हर साल लाखों पलायन करने को मजबूर हैं? यह समझना ज़रूरी है। अब बुधवार की बुद्धि…
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