ज्यादा कर्जदार देश को समृद्ध नहीं माना जा सकता। विकास का अगला पैमाना है कि औसत भारतीय कितना खुशहाल हुआ है? इसे जीडीपी के समग्र आकार से नहीं, बल्कि प्रति व्यक्ति जीडीपी से मापा जाएगा। मार्च 2014 में हमारा प्रति व्यक्ति जीडीपी 1559.86 डॉलर था। यह मार्च 2023 में 2612.45 डॉलर रहा है। यह गणना मौजूदा मूल्यों पर की गई है। अगर नौ सालों में औसत मुद्रास्फीति की दर को 5% मानें तो 2014 के 1559.86 डॉलर आज 2419.85 डॉलर हो चुके हैं। इसलिए सही मायनों में हमारा प्रति व्यक्ति जीडीपी नौ साल में मात्र 7.96% ही बढ़ा है जिस ‘विकास’ का सालाना औसत 0.88% निकलता है। यह व्यवहार में भी झलकता है। आज भी देश के 81.35 करोड़ लोगों को पेट भरने के लिए महीने में पांच किलो मुफ्त राशन देना पड़ रहा है। नौजवान पीढ़ी को काम के लाले पड़े हुए हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश में कुल बेरोज़गारी की दर 8% से ज्यादा है, जबकि 15 से 24 साल तक के युवाओं में बेरोज़गारी की दर 40% के पार जा चुकी है। देश में इस समय हर साल लगभग 22 लाख साइंस, टेक्नोलॉज़ी, इंजीनियरिंग व मैथ्स के ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट व पीएचडी निकलते हैं। लेकिन जिस तरह की शिक्षा-दीक्षा उन्हें मिलती है, उसके आधार पर इनमें से अधिकाश सीधे रोज़गार पाने के काबिल नहीं होते। अब मंगलवार की दृष्टि…
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