आलोचनाएं बहुत हो रही हैं। पूरा हिसाब लगाकर बताया जा रहा है कि सरकार 2025 या 2026 में भी भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था नहीं बना पाएगी। सवाल उठाया जा रहा है कि 2047 तक भारत को विकसित देश बनाना महज राजनीतिक जुमला तो नहीं। लेकिन सरकार मदमस्त हाथी की तरह सारी आलोचनाओं की परवाह किए बिना दावे करती जा रही है। इस बीच मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के अंतिम बजट की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। हालांकि इस बार 1 फरवरी, गुरुवार को पेश होनेवाला बजट पूर्ण नहीं, बल्कि अंतरिम बजट या लेखानुदान ही होगा। लेकिन तय है कि इसमें सरकार की वोट खींचनेवाली लोकलुभावन नीतियो को ऐसे पेश किया जाएगा, जैसे वे एकदम टटका घोषणाएं हों। मीडिया भी आदतन इन पर तालियां बजाएगा। लेकिन शोर के बीच सच कहीं न कहीं से सिर उठाने लगा है। कॉरपोरेट क्षेत्र का सरकारी कृपा से फल-फूल रहा एक हिस्सा प्रसन्न है। लेकिन बाकी हिस्सों में कसमसाहट है। बड़े कॉरपोरेट भी खुश हैं। लेकिन मध्यम आकार की कंपनियां और सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम (एमएसएमई) परेशान हैं। उपभोक्ता आमदनी न बढ़ने से परेशान है तो निवेशक लाभांश पर टैक्स और एसटीटी से। राहत कहीं नहीं। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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