देश के विदेशी मुद्रा बाजार में अभी तक केवल फ्यूचर सौदों की ही इजाजत है। लेकिन पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी मुद्रा के डेरिवेटिव उत्पादों का दायरा बढ़ाने पर विचार कर रही है। इसकी शुरुआत ऑप्शन सौदों से की जाएगी। यह बात आज सेबी के चेयरमैन सी बी भावे ने सिंगापुर में भारतीय वित्तीय बाजार पर आयोजित एक सम्मेलन में कही। इस सम्मेलन का आयोजन प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई (कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री) ने किया था।
भावे ने कहा कि हम करेंसी ट्रेडिंग में दूसरे तरह के डेरिवेटिव लाने पर विचार करेंगे। उत्पादों का दायरा बढ़ाने की शुरुआत ऑप्शंस से की जाएगी। बता दें कि देश में करेंसी डेरिवेटिव्स की शुरुआत अगस्त 2008 अंत से हुई और शुरुआत में डॉलर-रुपए के फ्यूचर सौदे होने लगे। इसमें ट्रेडिंग की सुविधा देनेवाले दो मुख्य स्टॉक एक्सचेंज एनएसई (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) और एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज हैं। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) ने भी इसकी शुरुआत की थी। लेकिन वहां कोई कामकाज नहीं हो सका। अब बीएसई ने जेपी कैपिटल के साथ यूनाइटेड स्टॉक एक्सचेंज बनाया है जिसे सेबी ने करेंसी फ्यूचर्स में ट्रेडिंग की अनुमति दे दी है।
इसी साल जनवरी से डॉलर के अलावा यूरो, ब्रिटिश पौंड और जापानी येन के साथ भी रुपए की जोड़ी बनाकर करेंसी फ्यूचर सौदे होने लगे हैं। लेकिन अभी तक खास वोल्यूम डॉलर-रुपए में ही है। जैसे, 16 अप्रैल को एनएसई में जहां डॉलर-रुपए में फ्यूचर्स के 20,151 करोड़ रुपए के सौदे हुए, वहीं यूरो-रुपए में 225.82 करोड़, पौंड-रुपए में 9.84 करोड़ और येन-रुपए में महज 1.90 करोड़ रुपए के सौदे हुए।
इन सौदों में डिलीवरी नहीं होती है। केवल भाव का अंतर देना होता है। फ्यूचर्स सौदों के साथ ऑप्शंस का अंतर यह है कि जहां फ्यूचर्स में सौदा पूरा करने की बाध्यता होती है, वहीं ऑप्शंस मे ग्राहक के पास विकल्प होता है कि वह खास मार्जिन देकर खरीद (कॉल) या बिक्री (पुट) से इनकार कर दे।
अभी एक्सचेंज के बाहर ग्राहक-बैंक या बैंक-बैंक के बीच विदेशी मुद्रा में डिलीवरी आधारित सौदों से सेकर ऑप्शन सौदे भी होते हैं। लेकिन इनमें जोखिम रहता है कि अगर सामने वाली पार्टी डिफॉल्ट कर जाए या करार पूरा करने से मना कर दे तो क्या होगा। इस जोखिम को खत्म करने के लिए सेबी ऑप्शंस को भी एक्सचेंज की ट्रेडिंग में लाना चाहती है। साथ ही करेंसी फ्यूचर सौदों को डिलीवरी आधारित भी बनाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक को विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम या फेमा में संशोधन करना पड़ेगा क्योंकि उसमें अभी तक विदेशी मुद्रा में ऑप्शन सौदों और डिलीवरी आधारित सौदों की अनुमति नहीं दी गई है।