देश भर में छोटे ऑपरेटरों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। वे कुकुरमुत्तों की तरह उग रहे हैं। मुंबई में ही कम से कम 100 नए ऑपरेटर आ गए हैं। इसी के साथ वोल्यूम का धंधा चल निकला है। वैल्यूमार्ट जैसे मामूली शेयर जो कभी एक रुपए पर चल रहे थे, अब 11.50 रुपए के ऊपरी सर्किट तक चले गए हैं। फिर भी 25 लाख शेयरों तक के खरीदार सामने आ जाते हैं। कहानियां गढ़ी जा रही हैं, शेयरो के भाव चढ़ाए जा रहे हैं और फिर उन्हें बेचने का सिलसिला चलाया जा रहा है।
इस तरह के ऑपरेटरों को पकड़ने में हमारी नियामक मशीनरी कारगर नहीं है। ऐसे ऑपरेटर समूह में काम करते है। एक ही छत के नीचे वे 25 से 50 टर्मिनल पर काम करते हैं और ज्यादा से ज्यादा ब्रोकरों से धंधा लेकर बनावटी वोल्यूम खड़ा करते हैं। इस तरह की हरकत थोड़े समय में भारी रिटर्न दिलाती है, लेकिन अंततः आपकी सारी पूंजी स्वाहा कर देती है। क्या कभी आपने सुना है कि तीन महीने के भीतर कोई आपको 100 फीसदी का रिटर्न दे दे और वो भी कैश में? इस तरह के सौदे और ऐसे ऑपरेटर ऐसा ही जाल फैलाते हैं। शुरुआत में ट्रेडरों को थोड़ा-बहुत रिटर्न भी मिल जाता है। लेकिन आखिर में सभी को फटका लगता है।
मेरा एक दोस्त 2007 में लोक हाउसिंग के शेयरों में 5 करोड़ लगा बैठा था। शेयर का भाव 500 रुपए तक ऊपर चला गया। लेकिन गिरा तो पहुंच गया सीधे 25 रुपए पर। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू) के अलावा ज्यादातर आईपीओ में लिस्टिंग के दिन यही होता है। उस दिन इन पर कोई सर्किट तो लगता नहीं, इसलिए ऑपरेटर जमकर खेल करते हैं। प्रवर्तक स्टॉक के वास्तविक मूल्य से 50 से 70 फीसदी भाव पर पूरा इश्यू ऑपरेटरों को बेच डालते हैं। ऑपरेटर अपने चैनल का सहारा लेकर स्टॉक को 100 फीसदी प्रीमियम (बढ़त) पर ले जाते हैं। फिर तब तक बेचते रहते हैं जब तक वह इश्यू मूल्य से 30 फीसदी तक डिस्काउंट (कम) पर नहीं आ जाता। इस तरह उन्हें अपने धन पर 30 से 50 फीसदी का रिटर्न मिल जाता है। लेकिन स्टॉक इसके बाद कुछ सालों के लिए एकदम ठंडा पड़ जाता है।
मेरे लिए अभी तक यह समझ पाना बहुत मुश्किल है कि लिस्टिंग के पहले दिन सर्किट ब्रेकर क्यों नहीं रहता। बाजार की नियामक संस्था कहती है कि बाजार को शेयर का सही मूल्य तय करने दो। लेकिन मर्चेंट बैंकर तो पहले ही आईपीओ में उसका मूल्य तय कर चुके होते हैं और आधार मूल्य के लिहाज से देखें तो वही सही मूल्य होता है। इसलिए उसी सही मूल्य के आधार पर सर्किट ब्रेकर लगना चाहिए ताकि निवेशक अगर अपना घाटा सीमित रखना चाहें तो उन्हें 20 फीसदी से ज्यादा घाटा न उठाना पड़े।
एक बात मैं आपसे कहना चाहूंगा कि आपको स्टॉक के चुनाव में बहुत ही ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए। यह नियम ए ग्रुप के लिस्टेड शेयरों पर भी लागू होता है। इसकी क्या गारंटी है कि किसी बुरी खबर पर टेक्नोलॉजी या बैंकिंग सेक्टर तक का कोई शेयर डाउनग्रेड नहीं कर दिया जाएगा और उसका हश्र भारती, आइडिया या मारुति की तरह नहीं हो जाएगा। इसलिए वही शेयर खरीदें जो अपने अंतर्निहित मूल्य से कम पर ट्रेड हो रहा हो। जैसे, आज की तारीख में सेंचुरी और बॉम्बे डाईंग में कुछ नहीं बिगड़ सकता क्योंकि उनकी जमीन की लागत शून्य है। कैनफिन होम्स, गिलैंडर्स, विम प्लास्ट व कैम्फर जैसे शेयर अब भी 4 से 7 प्राइस अर्निंग (पीई) अनुपात पर ट्रेड हो रहे हैं, जबकि सेंसेक्स का पीई अनुपात 17 चल रहा है। ऐसे शेयर आपको घाटे से बचा सकते हैं।
निफ्टी के 5500 अंक के स्तर पर आप हर दिन मुनाफे कमाने की उम्मीद नहीं पाल सकते। इसलिए फिलहाल निवेश में उतरते समय आप किसी भी स्टॉक में 10-20 फीसदी और सूचकांकों में 5 फीसदी गिरावट के लिए खुद को तैयार रखें। इससे आप हमेशा खुश रहेंगे और बाजार में अगर करेक्शन आता है तो आप बहुत अचंभित नहीं होंगे।
जीवन में खुशियां और प्यार पाने व देने का कोई मौका नहीं चूकना चाहिए क्योंकि यही तो सच है, बाकी सब माया है, छलावा है।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)