एक ऊपर, एक नीचे से लाभ दोगुना!

बाज़ार ऐतिहासिक ऊंचाई बना चुका है। सेंसेक्स और निफ्टी चढ़ते ही जा रहे हैं। क्या भारतीय अर्थव्यस्था वाकई इतनी मजबूत होती जा रही है कि शेयर सूचकांकों का बढ़ना स्वाभाविक है? कोई भी बता सकता है कि ऐसा कतई नहीं है। बाज़ार बाहर से आ रहे सस्ते धन के दम पर फूल रहा है और जैसे ही अमेरिका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व हर महीने सिस्टम में 85 अरब डॉलर डालने का सिलसिला रोक देगा, भारत समेत दुनिया भर के उभरते देशों के शेयर बाज़ार धड़ाम से नीचे आ सकते हैं। हालांकि तमाम विश्लेषक कहते हैं कि बाज़ार इस आशंका को डिस्काउंट करके चल रहा है। लेकिन आप जानते ही हैं कि बाज़ार किसी भी विश्लेषक या विश्लेषण का गुलाम नहीं है। उसकी अपनी स्वतंत्र लय-चाल है।

अभी तक की घोषणा के अनुसार फेडरल रिजर्व मार्च 2014 से बांड खरीदकर सिस्टम में नोट डालने का सिलसिला रोक सकता है या कम से कम इसे धीमा तो कर ही सकता है। ऐसा हुआ तो बाज़ार गिर सकता है। तब एक कुशल ट्रेडर की रणनीति क्या होनी चाहिए? अब तक के तमाम अध्ययन बताते हैं कि शेयर बाज़ार जितनी तेज़ी से चढ़ता है, उसकी तीन गुनी रफ्तार से गिरता है। दूसरे शब्दों में सेंसेक्स अगर 500 अंक चढ़ा है तो वह 1500 अंक गिर सकता है।

इसके पीछे के दो अहम कारण हैं। एक, डर की भावना लालच से कहीं ज्यादा बलवान होती है। दो, तेज़ी के दौर में ज्यादातर लोगों ने शेयर खरीद रखे होते हैं। जब बाज़ार गिरता है तो सभी अपनी पूंजी को बचाने में जुट जाते हैं। हर कोई बेचने पर उतारू हो जाता है। बाज़ार में मुठ्ठी भर ही खरीदार बचते हैं जिनके दम पर भाव चढ़ नहीं सकते। इसलिए बिकवाली रुकने का नाम नहीं लेती और बाज़ार बहुत तेज़ी से गिर जाता है। टेक्निकल एनालिसिस पढ़नेवाले हेड एंड शोल्जर फॉर्मेशन के बारे में जानते होंगे कि दूसरा शोल्डर तोड़ने पर बाज़ार वहां से हेड की ऊंचाई से डेढ़ गुना तक आसानी से गिर जाता है। यह आम मनोविज्ञान है जो बाज़ार में गिरावट के दौर को ज्यादा तल्ख बना देता है।

लेकिन समझदार और प्रोफेशनल ट्रेडर तेज़ी और मंदी के दौर, दोनों ही स्थितियों में कमाते हैं। उनकी इस रणनीति को डबल बीटा स्टैटज़ी (double Beta Strategy) कहा जाता है। इसका सार यह है कि जिन स्टॉक में बढ़ने का ट्रेंड हो, उन्हें कभी शॉर्ट मत करो। सप्लाई बढ़ने पर वे जब भी गिरते-गिरते डिमांड ज़ोन में आ जाएं तो उन्हें खरीदना चाहिए। गिरते वक्त उनको शॉर्ट करने में जोखिम बहुत है, जबकि रिवॉर्ड की गुंजाइश कम है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि जिन स्टॉक्स में गिरने का प्रबल रुझान हो, उन्हें गिरने पर भी नहीं खरीदना चाहिए। वे जब भी बढ़कर ऊपर जाएं तो उन्हें शॉर्ट करने में ही समझदारी है। बढ़ते स्टॉक्स में +1 और गिरते स्टॉक्स में –1 को रेखा के ऊपर नीचे जोड़ दें तो 2 की संख्या बनती है। इसे ही डबल बीटा कहते हैं।

किसी स्टॉक के ट्रेंड या रुझान का पता मूविंग औसत से निकाला जाता है। 5, 10 और 13 दिनों का एक्सपोनेंशियल मूविंग औसत (ईएमए) छोटी अवधि का ट्रेंड बताता है। 50, 75 और 100 दिनों का साधारण मूविंग औसत (एसएमए) मध्यम अवधि का ट्रेंड दिखाता है, जबकि 200, 300 और 365 दिनों का एसएमए लंबे समय का रुझान दिखाता है। मूलतः इन्हें डेली के चार्ट पर देखते हैं। पुष्टि के लिए साप्ताहिक चार्ट की मदद ली जा सकती है। अगर स्टॉक में लंबे व मध्यम समय का ट्रेंड ऊपर का है तो उसे शॉर्ट नहीं करना चाहिए। इसी तरह जिनमें लंबे व मध्यम समय का ट्रेंड गिरावट का है, उनमें लांग या खरीद के सौदे नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन ध्यान रखें कि बाज़ार नियमों से नहीं, बल्कि नियम बाज़ार से निकलते हैं। इसलिए किसी भी नियम का अनुसरण आंख मूंदकर करना कभी भी लाभ का सौदा नहीं होता।

बहुत से ट्रेडर बाज़ार के उतार-चढ़ाव के हिसाब से काम करते हैं। उनकी इस रणनीति में वीआईएक्स सूचकांक बड़ा मददगार होता है। आप इस VIX सूचकांक को बराबर एनएसई पर देख सकते हैं। अगर यह सूचकांक 15 से नीचे है तो माना जाता है कि अभी बाज़ार में कोई अफरातफरी की स्थिति नहीं है। लेकिन इसके 40 से ऊपर पहुंचते ही पता चलता है कि आगे भारी बिकवाली आ सकती है। इस समय एनएसई की साइट पर आप देख सकते हैं कि India VIX बीते शुक्रवार को 19.26 दर्ज किया गया है। मतलब न बहुत घबराने की स्थिति है, न ही बहुत निश्चिंत होने की। इस सूचकांक को किसी खास महीने में ऑप्शंस में कॉल व पुट सौदों के अनुपात से मापा जाता है। यूं तो इस सूचकांक की गणना थोड़ी जटिल है। लेकिन मोटे तौर पर पुट सौदों के ज्यादा होने पर यह सूचकांक बढ़ता है जो दिखाता है कि बाज़ार में डर ज्यादा हावी है। वहीं कॉल सौदों के ज्यादा होने पर यह सूचकांक कम रहता है जो दिखाता है कि बाज़ार फिलहाल लालच के आगोश में है।

खैर, इस पर कभी बाद में विस्तार से। फिलहाल डबल बीटा रणनीति को समझने की कोशिश कीजिए जो न्यूनतम रिस्क में अधिकतम लाभ कमाने का रास्ता खोलती है। बाज़ार नई ऊंचाई बना रहा हो तो शॉर्ट सौदों से बाज़ आएं। केवल और केवल खरीद की सोचें और रिट्रैसमेंट या सप्लाई बढ़ने से बाज़ार या स्टॉक के डिमांड ज़ोन में आने का इंतज़ार करे। इससे उलट बाज़ार या स्टॉक गिर रहा हो तो उसके बढ़कर सप्लाई ज़ोन में पहुंचने का इंतज़ार करें और वहां पहुंचते ही इसे शॉर्ट करें। यह सुनने या करने में आसान है, लेकिन करने में काफी कठिन है। इसे आत्मसात करने के लिए कठिन अनुशासन और लंबे अभ्यास की ज़रूरत है।

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