राष्ट्रीय दवा मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने अगस्त 1997 में अपनी स्थापना से लेकर 31 जुलाई 2011 तक अधिक मूल्य पर दवाएं बेचने के 812 मामलों में 2357.24 करोड़ रुपए का डिमांड नोटिस जारी किया है। इस राशि में दवाओं की बिक्री पर लिए गए अधिक मूल्य पर लगाया गया ब्याज शामिल है। लेकिन अब तक वह इसमें से महज 211.25 करोड़ रुपए यानी 8.96 फीसदी रकम ही वसूल कर पाया है। उसने ये नोटिस दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 1995 (डीपीसीओ 1995) के तहत जारी किए थे।
यह जानकारी रसायन व उद्योग राज्य मंत्री श्रीकांत कुमार जेना ने लोकसभा में लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। लेकिन मंत्री महोदय ने यह स्पष्ट नहीं किया कि जुर्माने की वसूली इतनी कम क्यों रही है। हां, उन्होंने इतना जरूर बताया कि ऐसा अदालती पचड़ों की वजह से है।
उनके द्वारा दी गई सूचना के मुताबिक डिमांड नोटिस की बाकी बची रकम 2145.99 करोड़ रुपए में से 1936.14 करोड़ की राशि के संबंध में मुकदमा चल रहा है और यह राशि विभिन्न अदालतों में लंबित है। इसके अलावा 33.71 करोड़ रुपए की राशि को विभिन्न राज्यों के वसूलीकर्ताओं द्वारा वसूल किया जाना बाकी है। 176.14 करोड़ रुपए के मामले में संबंधित दवा कंपनियों को अभी कहा जा रहा है।
एक अन्य सवाल में कॉरपोरेट कार्य राज्यमंत्री आर पी एन सिंह ने राज्यसभा में बताया कि सिप्ला और सन फार्मा के खिलाफ एसएफआईओ (स्पेशल फ्रॉड इनवेस्टीगेशन ऑफिस) की कोई जांच नहीं चल रही है क्योंकि इनके खिलाफ ऐसी किसी जांच का आदेश ही नहीं दिया गया है। वैसे, पिछले तीन सालों – 2008-09, 2009-10, 2010-11 के दौरान 33 कंपनियों के खिलाफ एसएफआईओ ने जांच की है।