ऐसा मत समझिएगा कि खाद्य सुरक्षा बिल पास होने के बाद हम अंगुली पकड़ने के बाद पहुंचा पकड़ने लगे हैं। ये खाद्य सुरक्षा से भी ज्यादा वाजिब सवाल और मांग है जो खैरात नहीं है। खाद्य बिल भले ही हमे अहसास कराए कि सरकार हम पर अहसान कर रही है, बिना इस अहसास के साथ कि आज़ादी के 66 साल जिसमे 55 साल कांग्रेस का शासन था, कांग्रेस को आज भी लगता है कि 84 प्रतिशत नागरिकों को पूरा खाना नहीं मिल रहा है।
मैं बिलकुल इस बात की तुलना नहीं करूंगा कि अगर आज के कांग्रेसी कहते हैं कि 1991 के बाद उदारवाद या उधारवाद से अर्थव्यवस्था से सुधरी है तो डॉ. मनमोहन सिंह के कारण, मतलब इन्दिरा और नेहरू मॉडेल बेकार और अप्रासंगिक थे कांग्रेसियों की नज़र मे । देखें तो कांग्रेस के हर दावे मे अपने ही गड्ढे खोदने की बात है। चाहे वो बोले कि 84 प्रतिशत को अन्न सुरक्षा देंगे, मतलब कि अब तक नहीं मिल रही थी, कहें कि उदारवाद से विकास होगा मतलब नेहरू और इन्दिरा मॉडल गलत रहा होगा।
अनिवार्य कर बीमा सुरक्षा ‘आग्रह नहीं अधिकार’ की विषय वस्तु है…
मैं आज तुलना करूंगा कि हम सरकार को दे क्या रहे हैं और सरकार हमे क्या दे रही है। हमारे हकों की लिस्ट तो बहुत लंबी है लेकिन आज मैं बीमा सुरक्षा की ही बात करूंगा और इसे आप दूसरे अर्थों मे जीवन व स्वास्थ्य सुरक्षा के रूप मे सामाजिक सुरक्षा का आवरण कह लीजिए जिसे सरकार को देना चाहिए। मैं यह बिलकुल नहीं कह रहा कि सरकार इसे अपने जेब से दे। सरकार हमे हमारे ही पैसे से हमारा बीमा करा के दे।
हमे और आपको मालूम ही है कि देश मे बीमा कंपनियां हैं, जो एक निश्चित प्रीमियम के भुगतान पर जीवन, स्वास्थ्य, शिक्षा और दुर्घटना बीमा करती हैं और इसमे से किसी तरह का संकट आने पर जोखिम से हुए नुकसान की भरपाई करती हैं। सरकार ने जितनी तत्परता बीमा कंपनियों मे विदेशी निवेश के लिए दिखाई है, उतनी तत्परता अगर उसने सरकारी कर ढांचे को अनिवार्य बीमा से जोड़ने पर दिखाती तो ज्यादा अच्छा था।
हम सभी को मालूम है कि चाहे उत्पाद शुल्क, वैट हो या आयकर हो, किसी न किसी रूप मे सरकार को हम टैक्स का भुगतान करते हैं, बदले मे कभी हमने सोचा है कि जितना हम देते हैं क्या सरकार उतना लौटा पाती है। मेरी तो राय है कि हमे हिसाब मांगना चाहिए और हिसाब के साथ साथ टैक्स को अनिवार्य बीमा के प्रीमियम से जोड़ देना चाहिए। कभी आपने सोचा है क्या कि एजुकेशन सेस के नाम पर सरकार आपसे पैसा लेती है जिस अधिकार के साथ, क्या आप उसी अधिकार के साथ अपने बच्चे के किसी भी तरह की शिक्षा के अधिकार की बात कर सकते हैं? क्या वो भी इस सरकारी तंत्र मे?
प्रत्यक्ष कर को कैसे अनिवार्य कर बीमा सुरक्षा से जोड़ा जा सकता है?
इसकी एक योजना सरकार बना सकती है। आइए हम बात करते हैं कि सरकार अगर चाहे तो इसे कैसे कर सकती है। आप आयकर का उदाहरण लीजिए। आपका आयकर अगर 10,000 है तो सेस मिलाकर यह बनता है 10,300 रुपए। सरकार को इस 10,300 रुपए के इस प्रकार अनिवार्य बीमा के प्रीमियम के रूप मे वितरण करना चाहिए।
यदि आयकर 10,300 रुपए है | ||
कर का प्रीमियम वितरण | प्रीमियम राशि | बीमे का प्रकार |
0.20% | 20 | शिक्षा |
0.10% | 10 | दुर्घटना |
0.40% | 40 | स्वास्थ्य |
0.30% | 30 | जीवन टर्म प्लान |
प्रीमियम कुल 1% पूरे कर राशि का |
इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का वर्तमान कर-भार के साथ ही उसका बीमा हो जाएगा और किसी तरह का शिक्षा, स्वास्थ्य, दुर्घटना या मृत्यु होने पर देश को कर के रूप मे दिए गए लगान के बदले सम्मान की बीमा राशि प्राप्त होगी बगैर किसी अहसान या मुआवजे के रूप मे। नागरिकों द्वारा दिए गए कर के अनुपात और राशि के हिसाब से बीमा कंपनियां बीमा सुरक्षा प्रदान करेंगी। इसके लिए सरकार को विभिन्न बीमा कंपनियों से साझेदारी करनी पड़ेंगी और साथ ही साथ सरकार विदेशी बीमा कंपनियों के लिए इस योजना मे भाग लेना अनिवार्य कर सकती है।
अप्रत्यक्ष कर को कैसे अनिवार्य कर समूह बीमा सुरक्षा से जोड़ा जा सकता है?
यह तो रही आयकर की बात, जहां कर देने वाले व्यक्ति की पहचान होती है जिसके द्वारा सरकार चिन्हित व्यक्ति का और उसके परिवार को बीमा सुरक्षा दे सकती है। लेकिन अप्रत्यक्ष कर के रूप मे सरकार एक बड़ा हिस्सा पाती है जो अमूमन आयकर की तुलना मे दोगुने से थोड़ा ज्यादा होता है। ऐसे कर के साथ सरकार चाहे तो अनिवार्य समूह बीमा का प्रयोग कर सकती है। उदाहरण के तौर पर अनुमानतः अप्रत्यक्ष कर के रूप मे सरकार हर साल आठ लाख करोड़ रुपए की वसूली करती है, वो भी सेस के साथ।
अगर सरकार इसे समूह बीमा योजना के साथ जोड़ दे और बीमा कंपनियों के साथ मिलकर पंचायत स्तर के ढांचे के सहयोग के साथ हर उस व्यक्ति को सामाजिक समूह सुरक्षा बीमा दे तो सामाजिक बीमा के रूप मे एक क्रांति आ जाएगी और सरकार पर अतिरिक्त भार भी नहीं आएगा। आठ लाख करोड़ के हिसाब से प्रति हिंदुस्तानी 6666 रुपए का अप्रत्यक्ष कर दे रहा है और अगर एक पंचायत यूनिट मे औसतन 5000 लोग रहते हैं तो उस पंचायत से सरकार को सालाना 3.33 करोड़ रुपए का अप्रत्यक्ष कर मिल रहा है। सरकार चाहे तो उस पंचायत से मिली कर की राशि अनिवार्य समूह बीमा प्रीमियम मे इस प्रकार बांट सकती है:
यदि पंचायत कर योगदान 3.33 करोड़ रुपए वार्षिक है | ||
कर का प्रीमियम वितरण | समूह प्रीमियम राशि | बीमे का प्रकार |
0.33% | 110000 | समूह स्वास्थ्य बीमा |
0.33% | 110000 | समूह दुर्घटना बीमा |
0.34% | 113333 | समूह जीवन बीमा |
प्रीमियम कुल 1% पूरे कर राशि का |
सरकार ऊपर बताए गए तरीके से अनिवार्य कर बीमा के मार्फत बीमा सुरक्षा प्रदान कर सकती है जो सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र मे पूरे विश्व मे एक उदाहरण होगा और बिना किसी अतिरिक्त कर-भार के नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य, दुर्घटना, जीवन व समूह बीमा का लाभ दे सकती है। वर्तमान बीमा कंपनियों के साथ-साथ नई आने वाली देशी और विदेशी बीमा कंपनियों पर सरकार अनिवार्य सहभागिता का नियम भी लगा सकती है। इससे करों के भुगतान के प्रति नागरिकों मे प्रोत्साहन भी बढ़ेगा।
– पंकज जाइसवाल
लेखक मुंबई में कार्यरत नामी चार्टर्ड एकाउंटेंट (सीए) हैं। आप उनसे इस मेल आईडी पर संपर्क कर सकते हैं: pankaj@anpllp.com