ब्याज में कटौती नहीं, बाजार हुआ निराश

दिल्ली के राजनीतिक हलकों में भले ही हड़बड़ी मची हो, लेकिन रिजर्व बैंक को फिलहाल कोई हड़बड़ी नहीं है। उसने मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा में कुछ भी नहीं बदला। सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) को पिछले ही हफ्ते उसने 5.5 फीसदी से घटाकर 4.75 फीसदी किया था तो उसे घटाने की गुंजाइश थी नहीं। ब्याज दर या रेपो दर में जरूर 0.25 फीसदी कमी की उम्मीद थी। बहुतेरे विश्लेषक मान रहे थे कि इसे 8.50 फीसदी से घटाकर 8.25 फीसदी किया जा सकता है। लेकिन रिजर्व बैंक ने इस दर को पहले जितना ही रख छोड़ा है।

वैसे, शेयर बाजार को लगता है कि निराशा हुई है। 10.57 मिनट पर निफ्टी 5441.70 अंक पर था। लेकिन 11 बजे नीति की घोषणा होते ही यह खटाक से दस मिनट के भीतर 0.78 फीसदी गिरकर 5399.25 पर आ गया। हालांकि वहां से बाद में सुधरने लगा। रिजर्व बैंक का कहना है कि बैंकों को 12 मार्च लेकर 16 मार्च तक एडवांस टैक्स की अदायगी के कारण अतिरिक्त तरलता की जरूरत थी, जिसे उसने 10 मार्च से सीआरआर को 0.75 फीसदी घटाकर पूरा कर दिया। बाकी अर्थव्यवस्था की ऐसी हालत नहीं है कि तुरत-फुरत कुछ करने की जरूरत थी।

रिजर्व बैंक का कहना है कि हाल में आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति की जो गति रही है, उसमें उसका मानना है कि अब मौद्रिक नीति को और कड़ा बनाने की जरूरत नहीं है। आगे जो किया जाना है, वो है ब्याज दरों में कमी। लेकिन विकास दर के धीमा पड़ने के बावजूद मुद्रास्फीति के बढ़ने का जोखिम अब भी बरकरार है। इसी के मद्देनजर ब्याज दर की भावी कटौती के समय और मात्रा का फैसला किया जाएगा। इससे हल्का-सा आभास तो मिलता ही है कि रिजर्व बैंक 17 अप्रैल को वित्त वर्ष 2012-13 की सालाना मौद्रिक नीति पेश करते वक्त ब्याज दरों, यानी रेपो दर में कमी कर सकता है।

संभवतः ब्याज दर में तत्काल कोई कमी न करना बुधवार को आए फरवरी के मुद्रास्फीति के आंकड़ों से प्रेरित फैसला हो। फरवरी में सकल मुद्रास्फीति की दर 6.95 फीसदी रही है, जबकि जनवरी में यह 6.55 फीसदी थी। इसमें भी खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति तेजी से बढ़कर 6.1 फीसदी पर पहुंच गई, जबकि दिसंबर में यह 0.8 फीसदी और जनवरी में ऋणात्मक 0.5 फीसदी थी। हालांकि मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों की मुद्रास्फीति दिसंबर के 7.9 फीसदी से घटकर फरवरी में 5.8 फीसदी पर आ गई है। फिर भी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति का जनवरी में 7.7 फीसदी रहना दिखाता है कि रिटेल स्तर पर अब भी कीमतों पर दबाव बना हुआ है।

रिजर्व बैंक ने आर्थिक विकास दर के चालू वित्त वर्ष 2011-12 की तीसरी तिमाही में घटकर 6.1 फीसदी और पूरे वित्त वर्ष का अनुमान 6.9 फीसदी पर आ जाने का जिक्र तो किया है। लेकिन इसे खास तवज्जो नहीं दी है। हां, उसे सरकार की राजकोषीय स्थिति को लेकर गंभीर चिंता है। रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा के मौके पर जारी वक्तव्य में कहा है कि केंद्र की राजकोषीय स्थिति 2011-12 (अप्रैल से जनवरी) के दस महीनों इतनी बिगड़ चुकी है कि राजकोषीय घाटा पूरे साल के बजट अनुमान को पार कर गया है। कर राजस्व घटा है, जबकि गैर-योजना खर्च, खासकर सब्सिडी का बोझ तेजी से बढ़ गया है। ऐसे में राजकोषीय मोर्चे पर कोई भी चूक मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ा सकती है।

जाहिरा तौर पर शुक्रवार को नए साल के बजट प्रावधानों को जाने बगैर रिजर्व बैंक कोई हड़बड़ी नहीं करना चाहता था। इसलिए सारे मौद्रिक मानक उसने जस के तस रख छोड़े हैं। जो भी करना होगा, वह अब 17 अप्रैल को करेगा। हां, उससे पहले सीआरआर में 0.25 फीसदी की मामूली कमी की गुंजाइश अब भी बाकी है। बता दें कि रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर बैंक रिजर्व बैंक ने अपनी तरलता जरूरत को पूरा करने के लिए तात्कालिक उधार लेते हैं, वही सीआरआर वह अनुपात है जिसके हिसाब से बैंकों को अपनी कुल जमा का निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक बैंक के पास हमेशा बतौर नकद रखना पड़ता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *