शेयर बाज़ार में ज्यादातर वही लोग आते हैं, जिनके पास झमाझम धन होता है। गरीब-गुरबां बहुत हुआ तो लॉटरी या जुए तक सिमटकर रह जाते हैं। लेकिन इन अतियों के बीच देश भर में शायद लाखों लोग ऐसे होंगे जो शेयर बाज़ार में इफरात धन बनाने के मकसद से उतरते हैं। शेयर बाजार में हर दिन करीब 3.15 लाख करोड़ रुपए का टर्नओवर होता है। उन्हें लगता है कि इसमें से हर महीने तीस-चालीस हज़ार रुपए तो यूं ही खींचे जा सकते हैं। इस मनसूबे को पूरा करने के लिए कभी अकेले तो कभी ब्रोकर के साथ बैठकर ट्रेडिंग करते हैं।
ज़माने के सताए लोग हैं। बहुतों से अपमान मिला है तो करोड़ों कमाकर उन्हें दिखाना चाहते हैं कि हम भी तुझ कमीने से कम नहीं। अंदर अहंकार है, गुस्सा है, बदले की भावना है। बुद्धि को भेज दिया है कहीं तेल लेने। भावनाओं में बहते हैं। जिनके पास धन है, उनमें भी अहंकार है। वे भी शेयरों के उठने-गिरने के आनंद में ऐसे भावविभोर हो जाते हैं कि पूछिए मत। शेयर बाज़ार में ऐसे ही जमाने के सताए और अहंकारी लोगों से बनती है वो भीड़, जिसकी भावनाओं का, चाहतों का शिकार करते हैं प्रोफेशनल ट्रेडर। कहने को यह अनैतिक लग सकता है। लेकिन ज़माने का दस्तूर यही है तो कोई कर भी क्या सकता है!
वैसे, शिकार कौन नहीं करना चाहता! अमीर कौन नहीं बनना चाहता! भीड़ की मानसिकता पर सवारी कौन नहीं गांठना चाहता! फिल्म निर्माता से लेकर प्रोडक्ट निर्माता कंपनियां तक इसी काम में लगी हैं। लेकिन अहम सवाल यह है कि शेयर बाज़ार में भीड़ का रुख, उसकी भावना को कैसे समझा जाए? टेक्निकल एनालिसिस के तमाम संकेतक भीड़ के इसी रुख को पकड़ने में मदद करते हैं। मुख्यतः दो किस्म के संकेतक या इंडीकेटर हैं। एक जो रुझान बताते हैं, शेयर के भाव या पूरे बाज़ार की दिशा बताते हैं। दूसरे वो जो बताते हैं कि आगे कहां-कहां कैसा मोड़ आनेवाला है जिन्हें ऑसिलेटर कहते हैं। इसके अलावा तीसरी श्रेणी भी है जो तरह-तरह के संकेत देनेवाले इंडीकेटरों से भरी पड़ी है। इसमें कुछ भाव पर चलते हैं, कुछ वोल्यूम पर तो कुछ दोनों को मिलाकर।
ट्रेंड या रुख बतानेवाले इंडीकेटर में प्रमुख हैं – सिम्पल व एक्पोनेंशियल मूविंग एवरेज (एसएमए, ईएमए) और एमएसीडी (मूविंग एवरेज कनवर्जेंस डाइवर्जेंस)। एमएसीडी का हिस्टोग्राम दिशा बताने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ठीक अगल-बगल के बार की ऊंचाई-निचाई ट्रेंड बताती है। ध्यान दें कि एमएसीडी किसी भी टाइमफ्रेम (साप्ताहिक, दैनिक या इंट्रा-डे) में अमूमन 26-12-9 का निकाला जाता है। एनएसई की वेबसाइट पर चार्ट बनाकर हम इस तरह के कई इंडीकेटर जोड़कर पूरी तस्वीर देख सकते हैं। महीने, हफ्ते और रोज का टाइमफ्रेम चुन सकते हैं। चाहें तो इंट्रा-डे का भी चार्ट वहां बना सकते हैं। यह सारा कुछ मुफ्त में हैं और काफी स्पष्ट है। बीएसई में भी इस तरह की सुविधा है। लेकिन वो एनएसई से थोड़ी कमज़ोर है।
ट्रेंड लाइन वगैरह खींचकर भी लोग किसी स्टॉक की दिशा परखते हैं। आप जानते ही हैं कि शेयर एक तो दिशा पकड़कर चलते हैं। ऊपर, नीचे या सीधे (साइडवेज़)। दूसरे वो हर वक्त लहरों की तरह ऊपर नीचे भी होते रहते हैं। इसमें आमतौर पर ट्रेडर किसी भी संकेतक से बड़े टाइमफ्रेम में दिशा पकड़ते हैं, जबकि छोटे टाइमफ्रेम से देखते हैं कि कब खरीदना है। जैसे साप्ताहिक चार्ट पर 13 दिन के ईएमए ने बताया कि दिशा ऊपर की है तो दैनिक चार्ट में देखा जाता है कि शेयर कितना नीचे तक जा रहा है ताकि उसे निचले भाव पर पकड़ा जा सके। इसमें भी और बारीक एंट्री के लिए घंटे का चार्ट देखा जाता है। याद रखें कि हमेशा बड़ा टाइमफ्रेम ट्रेंड को समझने के लिए सही होता है।
बाज़ार कब दिशा बदलनेवाला है, इसका पता बताते हैं ऑसिलेटर। इसमें आरएसआई (रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स), स्टॉकैस्टिक, विलियम%आर व आरओसी (रेट ऑफ चेंज) जैसे कई इंडीकेटर शामिल हैं। लेकिन आमतौर पर आरएसआई का ही ज्यादा इस्तेमाल होता है। ये इंडीकेटर बताते हैं कि कोई स्टॉक कब ओवरबॉट हो चुका है या कब ओवरसोल्ड। ओवरबॉट है तो आगे नीचे आएगा और ओवरसोल्ड है तो आगे बढ़ेगा। इसका विवरण आप एनएसई की साइट से समझ सकते हैं।
लेकिन नोट करने की बात यह है कि कोई भी ऑसिलेटर ट्रेडिंग रेंज में बेहतर काम करता है, जबकि ट्रेंड के दौरान फिसड्डी साबित होता है। बाज़ार सपाट या सीमित दायरे में चल रहा हो तो यह कमाल करते हैं। इसलिए इंट्रा-डे में इनका ज्यादा इस्तेमाल होता है। लेकिन बढ़ने या गिरने के दौरान इनके इशारों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। हो सकता है कि ट्रेड बतानेवाले संकेतक बढ़ने की दिशा बताएं, जबकि ऑसिलेटर कहे कि स्टॉक ओवरबॉट हो चुका है, इसे बेचो। इसकी उल्टी बात भी इसी तरह होती रहती है। साप्ताहिक चार्ट कुछ कहता है और दैनिक चार्ट कुछ और। इसलिए हमें इंडीकेटर को अलग-अलग नहीं, बल्कि उनके सम्मिलित प्रभाव का अध्ययन करना चाहिए। कोई एक इंडीकेटर कभी कमाल नहीं कर सकता है। उसे सही फ्रेम में रखना ज़रूरी है।
असल में, जो लोग शेयर बाज़ार में नए-नए आते हैं, अक्सर अलादीन के चिराग या किसी जादुई ताबीज़ की तलाश में लगे रहते हैं। सोचते हैं कि कोई एक संकेतक मिल जाएगा जो बताता रहेगा कि कब और कितने पर खरीदना या बेचना है और हम कुछ महीनों में राजा बन जाएंगे। किस्मत से तुक्का लग गया तो जादुई ताबीज़ का महिमागान करने लगते हैं। मगन हो जाते हैं कि खजाने तक पहुंचने का गुप्त द्वार मिल गया। लेकिन जल्दी ही जब सारी कमाई ब्याज समेत लुटा बैठते हैं तो फिर दूसरे किसी जादुई इंडीकेटर की तलाश में जुट जाते हैं। याद रखें कि बाज़ार इतना जटिल है कि उसे किसी एक संकेतक से नहीं समझा जा सकता।
इस जटिलता को गहन अध्ययन से ही समझा जा सकता है। इसके लिए तीन किताबों का लिंक नीचे दे रहा हूं। इन्हें पढ़ते हुए ध्यान रखें कि हमारा मकसद शेयर बाज़ार में आई भीड़ के मनोविज्ञान को समझना है। टेक्निकल एनासिलिस इसमें काफी मददगार है। वो ज़रूरी है, पर पर्याप्त नहीं। उसका काम ब्लड-टेस्ट या एक्स-रे रिपोर्ट देने जैसा है। बाकी डाइग्नोसिस और इलाज़ आपको खोजना होता है। यह हुनर अभ्यास, अध्ययन और अनुशासन से आता है। आशा करता हूं कि ये तीन किताबें इसमें आपकी सहायता करेंगी। मजबूरी और हमारा दुर्भाग्य है कि ऐसी तमाम किताबें केवल अंग्रेज़ी में उपलब्ध हैं। मेरी पीडीएफ फाइल्स यहां लग नहीं पाईं। इसलिए इन्हें आपको नेट से डाउनलोड करना पड़ेगा। नीचे दिए लिंक से तीनों किताबें मुफ्त में डाउनलोड की जा सकती हैं।
1. Trading for a Living 2. Come into my trading room 3. Japanese Candlestick Charting Techniques