इतिहास गवाह है कि चाहे देश हो, समाज हो, अर्थव्यवस्था हो या बाज़ार, झूठ ज्यादा नहीं चलता और अंततः जीत सत्य की ही होती है। कारण यह है कि झूठ के आधार पर कोई विकास हो ही नहीं सकता। बाज़ार में झूठ चलाते रहा जाए तो वह किसी दिन भयंकर असंतुलन और संकट को जन्म दे देता है। साल 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट इसका सबसे ताज़ातरीन उदाहरण है जब अमेरिका के वित्तीय जगत में चलाए जा रहे झूठ ने सारी दुनिया को अपने साथ डुबो दिया था। उसके नतीजे विकसित देशों की अर्थव्यवस्था अभी तक भुगत रही है। भारत में भी इस समय झूठ का बाज़ार गर्म है क्योंकि देश अब चुनावी मोड में जा चुका है। ज़मीनी हकीकत को ज़ोरदार बयानों और आंकड़ों के कुहासे की चादर तले दबाया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि भारत से गरीबी एकदम मिटने जा रही है और अमृतकाल में सब कुशल-मंगल है। अब सोमवार का व्योम…
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