यह कड़वी हकीकत है कि ‘सत्यमेव जयते’ के भारत में सदियों से झूठ का बोलबाला रहा है। तुलसीदास ने करीब छह सदी पहले रामचरित मानस में लिख दिया था, “झूठइ लेना झूठइ देना, झूठइ भोजन झूठ चबेना। बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा, खाइ महा अहि हृदय कठोरा।” मानस में भगवान राम के मुंह से असंतों के बारे में कहलवाई गई यह चौपाई आज हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर एकदम सटीक बैठती है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पत्र में कहा है कि लोकतंत्र की खूबसूरती जनभागीदारी और जनसहयोग में है। उन्होंने हम सभी के विश्वास और सहयोग की बात की है। लेकिन किसानों से जुड़े तीनों कानून किसान तो छोड़िए, उन्होंने संसद में बिना किसी बहस के आनन-फानन में पास करा लिए। किसान विरोध जताने दिल्ली आना चाहते थे तो उन्हें बाहर ही रोक दिया गया। अंततः किसानों के 378 दिनों के आंदोलन के बाद मोदी सरकार को तीनों कानून वापस लेने पड़े। नारी शक्ति वंदन अधिनियम लाए तो ज़रूर। लेकिन पेंच ऐसा फंसाया कि वो छह-सात साल बाद ही लागू हो जाएगा। इस बीच दिल्ली में धरने पर बैठी महिला पहलवानों की एक न सुनी गई। मणिपुर में महिलाओं की व्यथा-कथा सुनने मोदी जी अभी तक नहीं गए और न ही जानेवाले हैं। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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