अमृतकाल है या विश्वास का संकटकाल

दुनिया पर भले ही नई आर्थिक मंदी का संकट मंडरा रहा हो। लेकिन हमारा देश इंडिया यानी भारत इस वक्त भयंकर ही नहीं, भयावह विश्वास के संकट के दौर से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री झूठ बोलते हैं। समूची सरकार और उसमें बैठी पार्टी के आला नेता झूठ बोलते हैं। सरकार का हर मंत्री झूठ बोलता है। छोटे-बड़े अफसर भी बेधड़क झूठ बोलते हैं। हालत उस कविता जैसी हो गई है कि राजा बोला रात है, रानी बोली रात है, मंत्री बोला रात है, संतरी बोला रात है – यह सुबह-सुबह की बात है। अब तो सरकार की आलोचना करनेवाले अर्थशास्त्री तक झूठ गढ़ने लगे हैं। फिर सच सामने आएगा कैसे? और सच नहीं होगा तो देश को विकास के रास्ते पर सरपट दौड़ाने की राह कैसे खुल सकती है!

जमीनी धरातल पर ध्वस्त होने के बावजूद अब भी तीन साल में भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का दावा ऐसे-ऐसे लोग कर रहे हैं जिन्हें भान नहीं कि ट्रिलियन में एक के आगे कितने शून्य होते हैं। बता दें कि एक ट्रिलियन डॉलर माने एक लाख करोड़ डॉलर होता है और इसमें एक के आगे 12 शून्य होते हैं और डॉलर को रुपए में बदलने के लिए फिर इसे 82 से गुणा करना होगा।

खैर, देश के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं सौम्य कांति घोष। एकाध साल पहले तक सत्य को हाज़िर-नाज़िर जानकर सरकार की आर्थिक नीतियों के घनघोर आलोचक हुआ करते थे। लेकिन अब अर्थव्यवस्था के आकार को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए नई थ्योरी ले आए हैं। उनका कहना है कि भारत में घरों में सबकी देखभाल करनवाली स्त्रियों (मां, पत्नी, बेटी, बहन वगैरह) का न तो कोई दाम आंकता है और न ही इनके योगदान की गिनती होती है। अगर इसे शामिल कर लिया जाए तो भारत का जीडीपी सीधे 22.7 लाख करोड़ रुपए बढ़ जाएगा। भारत के जीडीपी का ताज़ा अनुमान अभी 273.08 लाख करोड़ रुपए का है जो बिना कुछ किए केवल घरेलू महिलाओं के योगदान की नई अनुमानित गणना को शामिल करने से 295.78 लाख करोड़ रुपए यानी 3.62 ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा। साहेब की नज़र सौम्य कांति घोष की बात पर गई तो वे बहुत ही गदगद हो जाएंगे और उन्हें ईनाम देंगे।

मगर, देश में छाए ऐसे घटाटोप के बीच सच कैसे सामने आएगा? एक समय शेयर बाज़ार में हर्षद मेहता का घोटाला हुआ तो सरकार ने जांच के लिए फौरन जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) का गठन कर दिया था। सच सामने आ गया और दोषियों को माकूल सज़ा मिली। अभी तो अडाणी समूह के लाखों करोड़ रुपए के घोटाले पर जेपीसी के गठन की बात छोड़िए, सरकार संसद में बहस तक कराने को तैयार नहीं हुई। शुक्र है कि देश में अब भी सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था बची है जिसमें इस मामले की जांच के लिए छह सदस्यों की विशेषज्ञ समिति बना दी है। इसमें इन्फोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी, आईसीआईसीआई बैंक के पूर्व चेयरमैन के.वी. कामथ, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ए.एम. सप्रे, एसबीआई के पूर्व चेयरमैन ओ.पी. भट्ट, रिटायर्ड जस्टिव देवधर और प्रतिभूति बाज़ार के विशेषज्ञ वकील सोमशेखर सुदरेशन शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी से कहा कि वह उक्त समिति को सारी जानकारियां उपलब्ध करा दें। लेकिन इधर सेबी की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठ खड़े हुए हैं। तृणमूल कांग्रेस की फायरब्रांड सांसद महुआ मोइत्रा ने आरोप लगाया है कि जब सेबी की कॉरपोरेट गवर्नेंस व इनसाइडर ट्रेडिंग की समिति में गौतम अडाणी के समधी बैठे हुए हैं तो सच कैसे सामने आ सकता है! दिक्कत यह है कि विश्वास के संकट के इस दौर में किसी पर तो विश्वास करना ही पड़ेगा। हाल ही में फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस की ट्रेडिंग पर सेबी की एक शानदार रिपोर्ट आई है जिससे आम या रिटेल निवेशकों व ट्रेडरों को बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है।

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